Wednesday, September 12, 2012

देश की मांग

कहते हैं आज के ये नेता भर के अपनी झोली 
पेट भरने के लिए लगाओ 32 की बोली 
समझ नहीं आती मुझे इनकी यह पहेली 
सुन कर पक्ष उनके मेरी अंतरात्मा भी दहली 

खाने को जिस ग्राम में नहीं मिलती रोटी 
उस ग्राम के घर घर में मांगते ये मत की बोटी 
देते दिलासा दिखा के स्वप्न पंचवर्षीय कार्यकाल का 
नहीं होता फिर कभी उन्हें ध्यान उस ग्राम के हाल का 

मतदान करके नागरिक चुनते अपने नेता 
नेता भी ऐसे जो होते महान अभिनेता 
संसद के मंच पर जो करते मारा मारी 
बनते देशसेवा के नाम पर ये सब बलात्कारी 

रंगमंच बना है आज फिर ये देश मेरा 
देखो है फिर आया समय का वो फेरा 
मर्यादा लाँघ घोंटते गला ये पत्रकारिता का 
लगाते पर ये नारा संविधान की सेवा का  

बैठ सत्ता की कुर्सी पर या हो विपक्ष में 
नेता सकते अपनी ही रोटी जनता के जलते लहू में 
हुंकार लगता है ये देश आज तुमसे तुम सुन लो 
बदलाव की आंधी ला इनको तुम पाठ पढ़ा दो 

मांगता है बलिदान आज देश तुमसे
चाहता है देश की तुम अपना स्वार्थ त्यागो 
हुंकार है देश की अंहिंसा का तुम पथ अपनाओ 
देश हित में काज करो, भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ो ।।



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