Saturday, July 21, 2007

गुजारीश वफ़ा-ए-सनम से

गुजारिश आज आपसे है ऐ सनम
दे सको तो देना खुशी न देना गम
कि गम का समंदर होता बहुत गहरा है
माझी तो छोडिये साहिल तक डूब जाता है

कि गम-ऐ-उल्फत में हम ना जी सकेंगे
तेरी तनहाई में जाम भी ना पी सकेंगे
कि पैमाना भी जब उठाते हैं
कमबख्त उसमें भी तेरा अक्स नज़र आता है

सोचते हैं कि धुंए में गम को छोड़ देंगे
लेकिन डर है कहीं धुएँ में तेरी तस्वीर ना नज़र आए
डर की दुनिया में हम कब तक जीते जाएंगे
क्या कभी तेरी बेवफाई से निजात पा सकेंगे

अब गर चाहत ये है ऐ सनम
कि ना रुसवा हो हमारी मोहब्बत
और ना कहे ये दुनिया हमें दीवाना
तो दे मुझे अपनी मोहब्बत कि खुशी

गुजारिश यही है तुझसे ऐ सनम
दे सके तो देना खुशी ना देना गम
कि गम के साए में बेजार होगी ज़िन्दगी
बेआबरू होंगे हम और बेवफा कहलोगी तुम

Sunday, July 1, 2007

गुजारिश

तुझे चाहने की सज़ा पाता हूँ
तेरे ही गम में अपना लहू जलाता हूँ
ना चाहते हुए भी अक्सर तेरे अक्स में
मैं अपनी रौशनी ढूंढें जाता हूँ
रोशनाई कहीँ कम ना पडे
ये सोच के अपने लहू से
मैं ये नज़्म लीखे जाता हूँ
गुजारीश करता हूँ आपसे आज
ना ही करो रुसवा यूं मेरी चाहत को
ना झुकाओ पलकें यूं
भर नफ़रत नीगाहों में
और यही इल्तजा है आज ए सनम
की मरहम बन इस नासूर-ए-दिल का
ले आगोश में लावारीस मेरी इस लाश को
सुकून मीलेगा मेरी रूह को तेरे साथ से
की जीते जी तेरा साथ ना मिल तो क्या
मर कर तेरा साया जो नसीब हुआ