Saturday, December 31, 2011

Ghost of Time & You

Going around the ghost of time
When I hear the wind chime
I feel it's a shame & crime
When we shy from the shine

Walk on the path of life
Without the fear of knife
Don't shy from challenges
Don't give into the mirages

Walk with a varied pace
Holding a smile on your face
You should become a craze
To be followed on life's maze

Going around the ghost of time
When I hear the wind chime
It should mark your presence
In my memory that's the essence

Walk with your head up tight
Walk with confidence up on might
You gonna make it happen
Don't let your spirits dampen

Friday, December 30, 2011

राहगीर तू चला चल

समय के साथ राहगीर तू चलाचल
अडचने बहुत आएंगी जीवन में
लेकिन तू थाम अपनी दांडी
राह पर चला चल बस चला चल

विजय होगी जो तेरी, तेरी ही है हार
हवा के झोंके सा बस पतझड़ का लगा अम्बार
जीवन है एक कठिन परीक्षा का नाम
लेकिन तू बस चला चल बस चला चल

Thursday, December 29, 2011

गुजारिश - ऐ - बंदगी

एक  अरसा हुआ कि हमारी एक अज़ीज़ दोस्त ने कुछ लफ्जात लिखे और हम उन्हें पढ़ ग़मगीन हो उठे थे....

लेकिन आज जब फिर पढ़ा उनका वो कलाम, तो दिल से निकले कुछ लफ्ज़, ये कलाम है उस दोस्त को सलाम और है उनको हमारा एक पैगाम....

गम का खजाना अंखियों में छुपा बैठे हो
इस जग में अपनी खुशी लुटा बैठे हो
क्यों करते हो गिला ऐसा
कि दामन में रंज-ओ-गम लिए बैठे हो
दुखियार न बन इस दुनिया में इतना
कि जीना दुश्वार ना हो जाए
ज़ख्मों को इतना न कुरेद तू
कि ज़ख्म नासूर न बन जाएँ
जीना है गर दुनिया में तो
सर उठा कर जी ऐ राही
न कर तू हिसाब ग़मों का
कि खुदाई बेजार ना हो जाए
है वक़्त गवाह तेरा है तारीख नज़र
खुशियाँ हैं छुपी दामन में तेरे
ना यूँ आँखों से अपनी खून बहा
कि  खुदा का सर भी झुक जाए
ऐ बंदे उठ देख एक नज़र
खुशियों से भरा ये समां ये मंज़र
नेमत खुदा की तू देख,
देख तू उसकी बंदगी 

Monday, December 19, 2011

यादें

यादों की कश्ती में सवार जब हम बातों की पतवार से सफर की कगार पर पहुंचते हैं तो कुछ नगमें यूँ बनते हैं जैसे कुछ लम्हों पहले हमारी एक शायरा दोस्त से बातें करते हुए बने| जी हाँ बात बात में उन्होंने कुछ इस तरह कहा -

अब उदास होना भी अच्छा लगता है
किसी का पास ना होना भी अच्छा लगता है
मैं दूर रह कर भी किसी की यादों में हूँ
ये एहसास होना भी अच्छा लगता है

अब हम ठहरे कुछ इस कदर के शायर कि हमारे लाफ्जात भी थम ना सके और हमने कुछ इस कदर कहा -

कि इस एहसास में मैं अपनी जिंदगी गुजार दूं
तेरी यादों के साये में अपनी उम्र गुजार दूं
साथ तेरा गर नसीब ना हुआ तो क्या
तेरे साये में मैं अपना अक्स गुजार दूं
सोचा न था कि कभी तुझसे यूँ गुफ्तगूं होगी
तन्हाइयों में तेरी यादें साथ होगी
आज तेरे इन लफ़्ज़ों मं रात तन्हां कर दूं
तेरी इन बाहों में रूहानी सफर तय कर दूं


Wednesday, December 7, 2011

प्रत्युत्तर


शाख से टूटे गर तुम पत्ते नहीं
तो तुम्हे टहनी कि गरिमा का गुमान तो होगा
पेड जो तुम्हें पैदा करता है
उसपर कुल्हाड़ी के निशाँ का गुमान तो होगा

Sunday, December 4, 2011

सिलसिला-ऐ-मुलाक़ात


नगमों का गर कभीं कोई दर्द समझे,
गर कोई उनकी रूह को समझे,
तो एक पयाम निकलता है कुछ इस कदर,
कि कायनात में जैसे चाँद निकले बादलों में छुपकर|

कल जो हमनें कलाम लिखा था, उसपर हमें मिला हमारी हसीन शायरा का पैगाम, पैगाम में था उनका कलाम जो हमनें थोडा और पढ़ा और थोडा और उसे उनसे बात कर निखारा| तो पेशे खिदमत है नया कलाम सिर्फ आपकी नज़रों कि इनायत के लिए |


वो हंसी मुलाकात जो तुमसे हुई...
पल भर का साथ, जो बीती बात हुई...
वो जो पल अब एक अरसा हुआ
मंजिलों का सफर सिफर सा दूर हुआ ...
फासलें ये दूरियों के हैं या खयालात के ...
चिलमन ये जो हैं पथ्थर के हैं या शीशे के .
तकते हैं राह आपकी जिन शाम-ओ-सहर ..
वो पल हमारी चाहत के हैं या बंदगी के...
इन्तेज़ार ऐ इबादत है अब तो उस पल का
इन्तेहाँ-ऐ-दामन है अब तो उस पल का
जब रूबरू हो यादों की ताबीर होगी...
आपकी ग़मगीन शामों की वो आखरी मंजिल होगी...
सर्द हवाओं में हमारी बाहें आपका साहिल होगी...
जुल्फों में हमारी आपकी खुशियों कि कश्ती होगी
इल्तजा है ऐ मुसाफिर तुझसे कि गमो में न खो जाना...
मोहब्बत की राह में किसी की रूह तो तेरे साथ होगी....

मुलाक़ात

सोचा ना था इस कदर यूँ मुलाक़ात होगी
तेरी यादों में यूँ तन्हा शाम-ओ-सहर होगी
इन्तेज़ार में हाल-ऐ-दिल का क्या गिला करें
इन्तेहाँ है कि बेसब्र दिल अब भी तेरा नाम ले
यादों में तेरी यूँ शाम-ओ-सहर ग़मगीन है
कि तन्हा हम ना कभी ग़मों के साए से हुए
यादों में तेरी जो दर्द-ऐ-मुरव्वत से रूबरू हुए
सर्द हवा का झोका जो हमें छू कर निकला
तेरी बाहों में गुजरे हा पल का एहसास करा गया
यादों में तेरी यूँ शाम-ओ सहर गमगीन है
सोचा ना था इस कदर तुमसे मुलाक़ात होगी
तेरी सूरत में मुझे मेरी जिंदगी कि सांझ मिलेगी
झरोखों से उजली चांदनी मे ऐ मेरे कातिल
मुझे मेरी जिंदगी कि आखरी मंजिल मिलेगी
सोचा ना था कि ये आलम इस कदर ग़मगीन होगा
तेरी यादों में हवा के सर्द झोंके सा एहसास होगा