Saturday, August 13, 2011

जीवन बरखा

क्यूँ करते हो ये शिकवा
कि थोडा और बरस लेने दो
जीवन की प्यास बुझने दो
मझधार में ना यूँ कश्ती छोडो
कि किनारे तक मुझे खेने दो
डूबने का डर नहीं मुझे
ना ही जीने की है तमन्ना
सोचता हूँ गर कभी
तो देखता हूँ तेरा ही सपना

हाल-ऐ-मशरूफियत

कुछ तुम मशरूफ, कुछ हम मशरूफ,
कि वक्त ना मिला यूँ गुफ्तगू का
कुछ तुम तन्हा कुछ हम तन्हा,
कि वक्त न मिला तेरे दीदार का
क्या गिला करें क्या करें शिकवा
कि हमको हमसे रूबरू होने का वक्त नहीं

कलम कि बेवफाई


दिल का दर्द कलम से उतर कागज पर बह गया
बहते बहते वो कागज़ पर एक स्याह लकीरें छोड़ गया
इन लकीरों में जिंदगी की चुभन थी
बीतें उन तन्हा लम्हों की सिमटन थी
सोचा न था कि कलम यूँ बेवफा निकलेगी
हमारे ही दर्द को हमारी आँखों के सामने रखेगी
सोचा न था हमारे शब्द यूँ बेगार होंगे
बेरूख हो दुनिया से बेजार करेंगे

अश्रुमाला

अश्रु जो बहे मेरी आँखों से
कह गए मेरे ह्रदय की गाथा
जिस पथ चले वो पी कर हाला
पिरो गए मेरी व्यथा की माला
संजों कर रख सके इसे
नहीं मिला जग में कोई
अश्रु जो बहे मेरी आँखों से
कह गए मेरे ह्रदय कि गाथा
ना तू मेरी ना ये जग मेरा
यही मेरे जीवन का फेरा
शुन्य बन गया ये जीवन सारा
भटकता हूँ बन में बंजारा
नहीं होता ज्ञात मुझे क्यों
छोड़ चली तू मुझे यूँ
छिन गयी तेरे बाँहों की माला
अर्पण  कर गयी मुझे तू अश्रु माला
अश्रु जो बहे मेरी आँखों से
कह गए मेरे ह्रदय कि गाथा



हाल-ऐ-दिल

हाल-ऐ-दिल कुछ यूँ बेसब्र हुआ
कि तन्हाई में कुछ यूँ बेजार हुआ
लौट आई कुछ यादें पुरानी
याद आई वो देफवाई तुम्हारी
होकर रह गई है सिफर सी जिंदगी
नहीं आसाँ इश्क की बंदगी
भूलना चाह कर भी भूल ना पाए
कुछ यूँ कौत के आये मिहब्बत के साये
तिस सी उभर आयी कुछ यूँ सर्द
महसूस हुआ कुछ मुझे जुदाई का दर्द
एहसास है हमें तुम्हे खोने का
दर्द है हमें तुमसे ता जिंदगी जुदा रहने का
चाह कर भी तुम्हें पा ना सकेंगे
तुम खुश रही यही खुदा से दुआ करेंगे