Saturday, June 6, 2009

खड़े सिफर की कगार पर

खड़े हैं सिफर सी जिंदगी के मोड़ पर
आशय विहीन राह कि खोज पर
देखते कतरे ज़िन्दगी के बिखरते
मानो है कोई कश्ती तूफ़ान में डूबते उतरते

है एक इशारा ये खुदा का
कि ना समझ पाएंगे क्यूँ हुआ इतना फख्र
है फ़िर भी दिल में ये जज्बा
कि मिलेगी राह एक आगाज़ को

अपनी मुस्कराहट से क्या तुम दिला सकते हो यकीन
कि एक पल के लिए है कोई उम्मीद हसीं
मंजर कुछ ऐसा है कि तुम आते नहीं नज़र
कुछ दिखता है तो है वो तुम्हारा अक्स शामों सहर

है एक इशारा ये खुदा का
कि ना समझ पाएंगे क्यूँ हुआ इतना फख्र
है फ़िर भी दिल में ये जज्बा
कि मिलेगी राह एक आगाज़ को

नहीं अब हमारा खुदपर काबू
नहीं आता समझ है क्या सच क्या झूठ
रात सा अँधेरा होता है हर वक़्त महसूस
डूबता नज़र आता है ज़िन्दगी का हर रूप

है एक इशारा ये खुदा का
कि ना समझ पाएंगे क्यूँ हुआ इतना फख्र
है फ़िर भी दिल में ये जज्बा
कि मिलेगी राह एक आगाज़ को