Monday, November 11, 2019

Selfish or Self Centered

What should be you 
a selfish person
or
a self centered one

For you 
I have to be lonely
with you also
I am lonely

Without you also
I am lonely
Why is it always
About you

What shall I call you
a selfish person
for whom I cry alone
and spend sleepless nights

Or should I call you
a self centered person
for whom I spend
most of my time in discomfort

What would you get from here
What is it that you want 
Why you would not accept
In God's mercy life exists

Thursday, September 19, 2019

वक़्त का पहिया

याद आते हैं बचपन के वो दिन 
जब खेलते थे हम गलियों में 
उधम जब करते थे दोस्तों संग 
हर त्यौहार पर होता था हर्षो-उमंग 

क्या दिन थे वो भी हमारे अपने 
कि बारिश की बूंदों में नाच उड़ते थे 
कलकल करते रह के पानी में 
कागज़ की कश्ती बना चलाया करते थे 

ना जाने कहाँ खो गए हैं वो दिन 
ना जाने कैसे अधूरी सी लगती है उमंग 
आज वो गालियां भी सूनी है 
सूना है हर घर का आँगन 

जहाँ बच्चे करते थे अठखेलियां 
वहां फैला है एक अजब सा सूनापन 
हाथों में मोबाइलफोन लिए 
बीत रहा है उनका बचपन 

ना गलियों में है वो रौनक
ना बरसात के बूंदों में कोई खनक 
अब तो बरसात है पानी भी बह जाता है 
अपनी बूंदो में कश्तियों की राह तकते   


Tuesday, September 17, 2019

दास्ताँ देश की

है ना अजीब दास्ताँ इस देश की
कि हर किसी ने चश्मा पहना है
किसी का चश्मा सब्ज़बाग़ दिखाता है
लेकिन ग़ुलामों के चश्में अंधा बनाते हैं
कुछ ज़ुबां पर सच्चाई लाते हैं
और कुछ प्रॉपगैंडा में खो जाते हैं
अब भाई बरसों से जो लूटते आए हैं
उनको हम कैसे लुटने दें
उनकी ४.८% GDP एक प्रगति थी
आज की ५% तो बँटा धार है
कैसे हम मान लें आज का सच
जब वो छीन रहे हैं साहब का हक़

Friday, September 13, 2019

Always Found You There

Always found you there
Whenever I was broken & shattered
Always found you there
When I looked around in that pain
Always found you there
Whenever I was alone & hurt

But where did you disappear
When I was high on my love
Why did you disappear 
When I was lost for my words
For you always sound to me
As if I were to go down on knee

Wait for me had been scorching like Sun
It made my blood cold like moon
For the wait gave me the seething pain
All my prayers for you went in vain
For you always sound to me
As if I were to go down on knee

When I always found you there
At the time of my despair
Why is it that you just disappeared
When I was lost for my words
 For you always sound to me
As if I were to go down on knee

Thursday, September 12, 2019

If You Ever Find Her

If you ever find her
Why she ditched me ask her
Long are the days am counting
Forever she's missing

It's my Life that I am searching
When the Sun's scorching
Even in the ice cold Winter
or the Rain's falling

Dissembled are the pieces in array
Losing that hopeful ray
I have been searching
Now, that my mind's aching

Why did the Life give me this miss
Why did the Life play this trick
Lost somewhere is the peace
Below the layers of memories

If you ever find her
Ask her to be back with me
I am here waiting on for her
To heel my wound of trust

राजनीति का अधर्म

राजनीति का अधर्म है यह 
या है अधर्म की राजनीति 
नैतिकता जहां लगी दांव पर 
व्यक्तित्व का जहां हुआ संहार 

आलोचना जो करनी थी नेता की 
कर बैठे नीतियों का मोल 
व्यक्ति विशेष पर करनी थी टिप्पणी 
कर बैठे राष्ट्र का अपमान 

इतना भी क्या घमंड वर्षों का 
इतना भी क्या दम्भ पैसों का 
इतना भी क्या मोह सत्ता का 
इतना भी क्या घमंड पद का 

राजनैतिक अधर्म नहीं तो क्या है 
कि करते हो तुम राजद्रोह 
अधर्मी राजनीति नहीं तो क्या है 
कि करते हो तुम सत्ता से मोह 

राजनीति का धर्म यदि है कोई 
तो है राष्ट्र की सेवा 
नहीं राजनीति में ऐसा कोई  मोह 
जो खिलाए तुम्हें केवल मेवा

Wednesday, January 16, 2019

निद्रालिंगन

निशा के प्रथम प्रहर से प्रतिक्षित हैं
किंतु निद्रा हमें अपने आलिंगन में लेती नहीं
कविता की पंक्तियों में जब खोना चाहें
तब कविता की कोई पंक्ति कलम पर आती नहीं
किससे कहें और क्या कहें
कि अब तो शब्दावली भी साथ निभाती नहीं
निद्रालिंगन में जितना हम जाना चाहते हैं
निद्रा हमें अपने आलिंगन में लेती नहीं
ना जाने क्योंकर अब निद्रा भी
स्वप्न नगरी में हमें आने देना चाहती नहीं
उचित नहीं या व्यवहार निद्रा का
कि अब मश्तिष्क से शब्दावली साथ निभाती नहीं
कैसे कहें और कैसे मनाएँ निद्रा को
कि कोई राह तक रहा है हमारी कहीं
सवेरे के सूरज की किरणों के साथ
कोई बाट जोह रहा है हमारी कहीं
छोटी सी प्यारी नन्हीं सी एक परी है मेरी
जो कर रही घर पर प्रतीक्षा मेरी
बस घर जा कर उसको आलिंगन में ले सकूँ
है निद्रा इस लिए तू अभी मुझे आलिंगन में ले ले
निशा के प्रथम प्रहर से प्रतिक्षित हूँ मैं
कि निद्रा अब मुझे आलिंगन में ले ले
मेरी नन्ही से परी बाट जोह रही मेरी
कर रही मेरे आलिंगन की वो प्रतिक्षा
अब तो कविता की पंक्तियाँ भी पूर्ण हो चली
अब तो ले चल मुझे स्वप्नों की गली।।

Tuesday, January 8, 2019

पथभ्रष्ट

भ्रष्ट तुम मुझे कहते हो 
अपनी लीला जब करते हो 
क्यों भूल जाते हो अपनी करनी 
जब भूखों को रोटी नहीं देते थे 

जब देश में था चोरो का राज 
जब कर्मचारी नहीं करते थे काज 
कर्जे में डूबा था हर कण 
देश खो रहा था प्रगति का रण 

भ्रष्ट तुम मुझे कहते हो आज 
जब सही हो रहे हैं सारे काज 
जब देश कर रहा है प्रग्रति 
तुम कर रहे हो शब्दों की अति 

भ्रष्ट तुम मुझे जो कहते हो 
अपने अतीत में नहीं देखते हो 
भ्रष्ट के साथ पथभ्रष्ट थे तुम 
विद्वता के धन से वंचित थे तुम 

भ्रष्ट मैं हो सकता हूँ एक क्षण 
पर पथभ्रष्ट नहीं मेरा एक कण 
नहीं भ्रष्ट है मेरा अंतर्मन मेरी मति 
और देश मेरा कर रहा प्रगति||