है ना अजीब दास्ताँ इस देश की
कि हर किसी ने चश्मा पहना है
किसी का चश्मा सब्ज़बाग़ दिखाता है
लेकिन ग़ुलामों के चश्में अंधा बनाते हैं
कुछ ज़ुबां पर सच्चाई लाते हैं
और कुछ प्रॉपगैंडा में खो जाते हैं
अब भाई बरसों से जो लूटते आए हैं
उनको हम कैसे लुटने दें
उनकी ४.८% GDP एक प्रगति थी
आज की ५% तो बँटा धार है
कैसे हम मान लें आज का सच
जब वो छीन रहे हैं साहब का हक़
कि हर किसी ने चश्मा पहना है
किसी का चश्मा सब्ज़बाग़ दिखाता है
लेकिन ग़ुलामों के चश्में अंधा बनाते हैं
कुछ ज़ुबां पर सच्चाई लाते हैं
और कुछ प्रॉपगैंडा में खो जाते हैं
अब भाई बरसों से जो लूटते आए हैं
उनको हम कैसे लुटने दें
उनकी ४.८% GDP एक प्रगति थी
आज की ५% तो बँटा धार है
कैसे हम मान लें आज का सच
जब वो छीन रहे हैं साहब का हक़
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