Wednesday, July 23, 2014

चंद शेर

अपनी बर्बादी के किस्सों को बयान नहीं करते
कि कहीं उनमें अपनी ही कमजोरी होती है
खंज़र-ऐ-दुश्मन गर कभी चल भी जाए तो क्या
अपने होसलों से कामयाबी हासिल करते हैं ||

ना डर तू किसी से ता ज़िन्दगी
फिर वो खुद खुदा क्यों ना हो
सच कि राह पर गर तू चलेगा
दुश्मन तो क्या खुदा भी तुझसे डरेगा || 

Saturday, July 12, 2014

हर इंसा आज यहाँ है तन्हा

तुम भी तन्हा हो हम भी तन्हा है
और नज़ारा देखो दुनिया का
हर इंसा यहाँ तन्हा है
हादसा है ये ज़िन्दगी का
हर इंसा खुद में ही तन्हा है 

मुक़द्दर देखो इस इंसा का
तन्हा इसने गुजारी ज़िन्दगी
तन्हा ही मिली मौत भी इसे
घुमा ये तन्हा हर गली हर गुचा
फिर भी इसे हम तंहार न मिला

हर इंसा आज यहाँ तन्हा है
हर मोड़ पर बसती तन्हाई है
अनमोल है आज साथ हमसफ़र का
हर जर्रे पर तन्हाई बसती है
हर मोड़ पर तन्हाई बसती है

कहाँ गया वो ज़ालिम ज़माना
जिस रोज़ तन्हाई तरसती थी
आज देखो ज़िन्दगी तन्हाई में तरसती है
हादसा है ये ज़िन्दगी का 
हर इंसा आज यहाँ है तन्हा||

कुछ लोग जो ऐसे मानते हैं

कुछ लोग जो ऐसे मानते हैं
औरो से ज्यादा वो जानते हैं
रिश्तों कि कीमत वो क्या जाने
जो औरो को खुद से कम मानते हैं

घमंड में ऐसे चूर हैं वो
खुदा को भी बांटा करते हैं
खुद को बड़ा बनाने को वो
इबादत को भी झुठलाते हैं

ऐसो के साथ क्या टकराना
ऐसो से शायद कतराना
वो लोग ऐसे होते हैं
जो खुद को खुदा मानते हैं

नहीं कोई मोल है इनका
नहीं कोई करता सम्मान
फिर भी घमंड में चूर हैं ये
अपने ही मद में मदहोश हैं ये

इनसे वैसे ना घबराना
इनसे वैसे ना टकराना
बैर क्या लेना इनसे
वो खुद के बैरी बैठे हैं-२