अपनी बर्बादी के किस्सों को बयान नहीं करते
कि कहीं उनमें अपनी ही कमजोरी होती है
खंज़र-ऐ-दुश्मन गर कभी चल भी जाए तो क्या
अपने होसलों से कामयाबी हासिल करते हैं ||
ना डर तू किसी से ता ज़िन्दगी
फिर वो खुद खुदा क्यों ना हो
सच कि राह पर गर तू चलेगा
दुश्मन तो क्या खुदा भी तुझसे डरेगा ||
कि कहीं उनमें अपनी ही कमजोरी होती है
खंज़र-ऐ-दुश्मन गर कभी चल भी जाए तो क्या
अपने होसलों से कामयाबी हासिल करते हैं ||
ना डर तू किसी से ता ज़िन्दगी
फिर वो खुद खुदा क्यों ना हो
सच कि राह पर गर तू चलेगा
दुश्मन तो क्या खुदा भी तुझसे डरेगा ||
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