Tuesday, March 10, 2015

दामन

यूँ ना जा तू आज दामन छोड़ कर
कि इस दामन में तेरा बचपन पला है
इस आँचल ने तुझे तपिश में ढंका है
इसी आँचल की छाँव में तेरा लड़कपन गुजर है
ना आज तू इस दामन को बेज़ार कर
ना दुनिया के सामने अपनी माँ को शर्मसार कर
ज़िद है गर तेरी कि तुझे खुद चाहिए
तो चल उस राह पर जहाँ खुदा तुझे ढूंढे
ज़िद गर तेरी है दौलत पाने की
तो चल उस राह पर जहाँ दौलत तुझे चूमें
ना जा तू आज यूँ दामन छुड़ा कर
कि कहीं तू दुनिया के थपेड़ों से झुलस ना जाए
माँ की ममता का यूँ ना उड़ा मखौल
कि कहीं तू माँ के अस्तित्व को ना मिटा दे।।

दोराहा

ज़िन्दगी के कैसे दोराहे पर खड़े हैं
की जिस और कदम बढ़ाएंगे नुकसान ही है
गम-ऐ-जुदाई गर एक तरफ है
तो रिश्तों के कच्चे धागे दूसरी ओर
अब चलें भी तो किस राह चलें
साथ दें भी तो कि किसका दें
आज अपने ही अपनों से बेगाने हैं
आज अपनों से ही हम बेआबरू हुए
दोराहे पर यूँ खड़े हैं अब हम
यूँ ज़िन्दगी से बेज़ार हुए से हैं ह