Wednesday, February 24, 2016

ख़बरों को हम बेचते हैं

कुछ पंक्तियाँ भारत के पराधिन मानसिकता वाले भारत के अजनबी अंग्रेज़ी भाषा के साहित्यकारिक पत्रकारों के लिए!!

छोड़ आए हम अपनी शर्मोहया
करते है बस बदज़ुबानी बयाँ 
देश की हमें परवाह नहीं
वामपंथ के हैं हम राही

करते हैं बस ख़ुदपर गुमान
नहीं देशभक्ति का हमपर निशान
चाहते हैं बस धन धन धन
सुनते हैं बस खन खन खन 

ख़बरों को हम बेचते हैं
नहीं बिकती तो नई बनाते हैं
सच से नहीं कोई सरोकार
नेताओं पर तो करते हैं परोपकार

आतंकवादी के मानवाधिकार मानते हैं
सेना का केवल अत्याचार मानते हैं
धर्मनिरपेक्षता हमारी शान है 
शाब्दिक दंगाइयों में हमारी पहचान है

फूँक देते है हम सच को 
बलि चाहे कोई चढ़ता रहे
बोलना हमारा मौलिक अधिकार है
क्या बोलते हैं हम ख़ुद नहीं जानते।।

We Have Had Enough

We have had it enough to face
Running against time's race
When the world is moving forward
We are made to march backwards

The words today shout out loud
Actions have diminished in the crowd
What we used to feel proud about
Is lost in anti-national sprout

We have had it enough to face
With you trying to make your case
India today is with its forces
Shun the human rights for terrorist torches

The nation today knows the fact
It can make out what to select
You can try to preach your view
To believe or not is nation's purview

We have had it enough to hear
Now we are all ready to Swear
And we swear by the Constitution
Don't need no body's damn permission

We today stand by the forces
Without wearing the media glasses
We have decide to quit those classes
Which always misleads the masses

Gone are the days when we followed
Gone are the days when we were bestowed
Today's youth need not follow the ordeal
For we have had enough that we now seal!! 

Tuesday, February 23, 2016

लहू के दो रंग

आज इस धरा पर लहू के दो रंग
एक चढ़ गया मातृभूमि को नमन करते
और एक हो गया श्वेत 
मातृभूमि का करते हुए शील भंग

वीर सपूत छाप रक्तिम छोड़ गया 
चढ़ गया माँ के चरणो भेंट
 श्वेत लहू धारक किंतु
कर रहा लाल माँ की ही कोख

लहू के दो रंग देखे मैंने
हुआ कितना मैं लज्जित
सीमा पर बलिदान दे रहा सैनिक
छाप रहा अराजकता यहाँ हर दैनिक

लहू के दो रंग हुए इस धरा पर
एक है रक्तिम और दूसरा श्वेत
एक लाल कर गया माँ की चुनर रंग
दूसरा अब भी कर रहा माँ का शील भंग।।

Monday, February 22, 2016

अभ्यास

जितना भी तुम अभ्यास कर लो
भारत नहीं तुम तोड़ पाओगे
प्रलय की भी शक्ति जोड़ लो
बाल बाँका नहीं कर पाओगे

ईश्वर ने है यह सृष्टि रचि
बनाया उसने यह भारत खंड
कितना भी तुम प्रयास करलो
रहेगा भारत सदैव अखंड

वर्षों से हुए बहुत प्रयास
किया इसने सब आत्मसात
जो भी आया यहां
रह गया यहीं का बनकर

जितना चाहे तुम उत्पात मचालो
कितना भी तुम प्रयास कर लो
ईश्वर ने है बनाया यह खंड
हम रखेंगे इसे सदैव अखंड।।

वन्दे मातरम की हुंकार

प्रहर अंतिम है रात्रि का
प्रहार अब हमें करना है
एक क्षण के लिए भी अब
अर्थ नहीं जानना चित्कार का

यूद्ध का उदघोश हुआ है
वीरों के बलिदान से
करना है अब अंत इसका 
आतंकियों की रक्तिम छाप से

ब्रह्मा मुहूर्त का बिगुल बजेगा
विजय के शंखनाद से
वीरों का सम्मान होगा
शत्रु की पराजय से

शत्रु को तुम परास्त करोगे
खड़ग कृपाण कटार से
विजय तुम नारा लगाना
वन्दे मातरम की हुंकार से।।

धरा के वीर

कहते नहीं जब थकते तुम ये बात
कितनी स्याह होगी अब ये रात
बिछाते हुए आतंकवाद की बिसात
छुप क्यूँ जाते हो यूँ अकस्मात्

किस अफ़ज़ल का तुम बदला लोगे
भारत के क्या तुम टुकड़े करोगे
हर अफ़ज़ल को एक पवन मारेगा
किसी मक़बूल को ना महाजन छोड़ेगा

कश्मीर का तुम स्वर बनते हो
उसी कश्मीर में नरसंहार करते हो
माँ के सपूतों का लहू बहकर
चिल्लाते हो लश्कर लश्कर

मत भूलो तुम भारत की सेना को
सदैव तत्पर है जो राष्ट्र रक्षा को
वीर हैं वो ऐसे माँ के सपूत
सुला देंगे तुमको बना कपूत

मत भूलो इस धरा के वीरों को
समाप्त कर देंगे जो तुम जैसो को
नहीं डरते जो किसी ललकार से
मिटा देंगे जो तुम्हें केवल एक हुंकार से।।

Saturday, February 20, 2016

कैसा है ये लोकतंत्र

कैसा है ये लोकतंत्र
कैसा है ये जनतंत्र
हैं एक मंच पर एकत्रित 
भारत विरोधी मित्र

स्वतंत्रता की अभिवक्ति का
करते हैं दुरुपयोग उस शक्ति का
करते हैं राष्ट्र विरोधी बातें
कहते हैं काली होंगी और रातें

करते हैं आपत्ति राष्ट्र ध्वज लहराने पर
लज्जित होते हैं वन्दे मातरम् बोलने पर
सर झुकाते हैं आतंकी के सम्मान में
नमन नहीं करते सैनिक के सम्मान में

राष्ट्र विरोधियों का देते हैं साथ
पढ़ते सदैव जात पात का पाठ 
हर समय देखते हैं सत्ता का स्वार्थ
राष्ट्र हित का नहीं करते परमार्थ

अन्ध्भक्त बन हम भी करते अनुसरण
नहीं समझते इसका कोई कारण
होती समाचारों में जो लीपा पोती
छुप जाती है सच्चाई नहीं हमें दिखती


Monday, February 15, 2016

ये रिश्ता हमारा

ये तेरा ये मेरा, ये रिश्ता हमारा
कैसा है ये ईश्वर का खेला
कि तू है मेरी जान 
कैसे रहूँ मैं तेरे बिन-२

जीवन की राहों में साथ हो तेरा
यही है सदैव विश्वास हमारा
करते हैं ईश्वर से यही हम प्रार्थना
कि संग तेरे ही जीवन है जीना - २

श्रिश्टी के रचियता की अनूठी कहानी
प्यार के साथ की विडम्बना है सहनी 
विचरण है करना कहीं है भटकना
रिश्ते की गाँठों को है सुलझाना-२

ये तेरा ये मेरा, ये रिश्ता हमारा
ईश्वर ने रचा है खेल ये सारा
कभी है साथ तो कभी हैं दूरियाँ
जैसे दो पाटों के बीच बहती है नदिया

ना खों विश्वास कभी तू हारकर
रहूँगा सदैव मैं तेरा ही बनकर
की तू है मेरी जान 

किया है ये जीवन बस तेरे नाम - २