कुछ पंक्तियाँ भारत के पराधिन मानसिकता वाले भारत के अजनबी अंग्रेज़ी भाषा के साहित्यकारिक पत्रकारों के लिए!!
छोड़ आए हम अपनी शर्मोहया
करते है बस बदज़ुबानी बयाँ
देश की हमें परवाह नहीं
वामपंथ के हैं हम राही
करते हैं बस ख़ुदपर गुमान
नहीं देशभक्ति का हमपर निशान
चाहते हैं बस धन धन धन
सुनते हैं बस खन खन खन
ख़बरों को हम बेचते हैं
नहीं बिकती तो नई बनाते हैं
सच से नहीं कोई सरोकार
नेताओं पर तो करते हैं परोपकार
आतंकवादी के मानवाधिकार मानते हैं
सेना का केवल अत्याचार मानते हैं
धर्मनिरपेक्षता हमारी शान है
शाब्दिक दंगाइयों में हमारी पहचान है
फूँक देते है हम सच को
बलि चाहे कोई चढ़ता रहे
बोलना हमारा मौलिक अधिकार है
क्या बोलते हैं हम ख़ुद नहीं जानते।।
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