Wednesday, January 16, 2019

निद्रालिंगन

निशा के प्रथम प्रहर से प्रतिक्षित हैं
किंतु निद्रा हमें अपने आलिंगन में लेती नहीं
कविता की पंक्तियों में जब खोना चाहें
तब कविता की कोई पंक्ति कलम पर आती नहीं
किससे कहें और क्या कहें
कि अब तो शब्दावली भी साथ निभाती नहीं
निद्रालिंगन में जितना हम जाना चाहते हैं
निद्रा हमें अपने आलिंगन में लेती नहीं
ना जाने क्योंकर अब निद्रा भी
स्वप्न नगरी में हमें आने देना चाहती नहीं
उचित नहीं या व्यवहार निद्रा का
कि अब मश्तिष्क से शब्दावली साथ निभाती नहीं
कैसे कहें और कैसे मनाएँ निद्रा को
कि कोई राह तक रहा है हमारी कहीं
सवेरे के सूरज की किरणों के साथ
कोई बाट जोह रहा है हमारी कहीं
छोटी सी प्यारी नन्हीं सी एक परी है मेरी
जो कर रही घर पर प्रतीक्षा मेरी
बस घर जा कर उसको आलिंगन में ले सकूँ
है निद्रा इस लिए तू अभी मुझे आलिंगन में ले ले
निशा के प्रथम प्रहर से प्रतिक्षित हूँ मैं
कि निद्रा अब मुझे आलिंगन में ले ले
मेरी नन्ही से परी बाट जोह रही मेरी
कर रही मेरे आलिंगन की वो प्रतिक्षा
अब तो कविता की पंक्तियाँ भी पूर्ण हो चली
अब तो ले चल मुझे स्वप्नों की गली।।

Tuesday, January 8, 2019

पथभ्रष्ट

भ्रष्ट तुम मुझे कहते हो 
अपनी लीला जब करते हो 
क्यों भूल जाते हो अपनी करनी 
जब भूखों को रोटी नहीं देते थे 

जब देश में था चोरो का राज 
जब कर्मचारी नहीं करते थे काज 
कर्जे में डूबा था हर कण 
देश खो रहा था प्रगति का रण 

भ्रष्ट तुम मुझे कहते हो आज 
जब सही हो रहे हैं सारे काज 
जब देश कर रहा है प्रग्रति 
तुम कर रहे हो शब्दों की अति 

भ्रष्ट तुम मुझे जो कहते हो 
अपने अतीत में नहीं देखते हो 
भ्रष्ट के साथ पथभ्रष्ट थे तुम 
विद्वता के धन से वंचित थे तुम 

भ्रष्ट मैं हो सकता हूँ एक क्षण 
पर पथभ्रष्ट नहीं मेरा एक कण 
नहीं भ्रष्ट है मेरा अंतर्मन मेरी मति 
और देश मेरा कर रहा प्रगति||