Wednesday, January 20, 2016

कान्हा - सुन मेरी पुकार

ना तेरी बांसुरी ना तेरा माखन
आज मोहे दे दे तू अपना चक्र
ना है अब ये महाभारत
ना चाहिए मुझे अस्त्रों में महारत

मत बन तू मेरा सारथी
मत बना मुझे तू अर्जुन
आज बन तू मेरा साथी
करने को नए जग का सृजन

कलयुग के अन्धकार में आज
डूब गया है मानवधर्म
फ़ैल रहा अधर्म चहुँ और
नहीं दिखता मानवता का छोर

आदम आदम को आज चीर रहा
फैल रहा अत्याचार
हर घर में आज दानव बसा है
कर रहा व्याभीचार

आज बन मेरा तू साथी
कर एक नए युग का सृजन
उठा साथ मेरे तू अस्त्र
बदल दे समय का ये चक्र

कुछ दूर निकल आये हैं

कुछ दूर निकल आये हैं घर की खोज में 
अकेले ही निकल आये हैं  
एक नए घर की खोज में 
साथ अब ढूंढते है तेरा घर की खोज में 

एक था वो दिन जब रहते थे तेरी छाँव में 
फिर दैत्यों ने किया दमन तेरी गोद में 
लहू की नदियां बहाई, तेरी धरा पर 
बहनो की अस्मिता लूटी, तेरी धरा पर 

आज फिर एक बार मुंह खोला उन्होंने 
घर से हमें निकाल हमें दोषित किया उन्होंने 
हे शिवा क्या यही थी तेरी इच्छा 
क्या विनाश का तांडव लगा तुझे सच्चा 

दो दशक बीत गए हमें यूँ निकल कर 
फिर भी घर का पता ढून्ढ रहे तेरी गोद में 
कुछ दूर निकल आये हैं घर की खोज में 
आज घर भी बाट जोह रहे, हमारे विलोप में॥