Sunday, September 2, 2012

बेहया आँखें

बहती हैं बेहया ये आँखें, जाने किसको याद करके
जाने किसके गम में, रह गई में रुदाली बनके
जाने किस गली किस चौबारे फिर उनसे रूबरू है होना
आज का तो बस यही आलम है कि है रात दिन का रोना

ना जाने क्यों याद में उनकी है ये दिल तडपता
ना जाने क्यों याद में उनकी थमती मेरी साँसें
याद में उनकी आब-ऐ-तल्ख़ है बहता
ना जाने उनसे हमारा ऐसा कौन सा नाता

अब तो बस रहता हर पल यूँ ही उनका इन्तेज़ार
ना जाने कौन है वो जिसके लिए है ये दिल बेकरार
बहती हैं जिसके गम में बेहया से आँखें 
थमती हैं जिसकी याद में हमारी ये साँसें

1 comment:

Mariah Raman said...

not too good to understand the word by word, but it indeed touched somewhere guess heartfelt!