Thursday, September 13, 2012

भिखारी का प्रश्न

बाज़ार में घुमते घुमाते मिला मुझे एक भिखारी 
देख मुझे उसने खाने की लगाईं गुहारी 
पूछा मैंने उससे कि है क्या उसकी मंशा
वह बोला कि दो जून रोटी है उसकी अभिलाषा

बैठ पास उसके मैंने उसे समझाया बहुत
कर परिश्रम पाए पारिश्रमिक समझाया बहुत
था वह अपनी करनी पर अडिग
पूछ बैठा वह प्रश्न अत्यंत ही जटिल

ना मुझे कुछ सूझा ना मति ने कुछ सुझाया
ना ही मेरी बुद्धी में ने वह प्रश्न बुझाया
कुछ ऐसा तथ्य था उसके गूढ़ प्रश्न में
बहुत समय व्यतीत किया मैंने चिंतन करने में

प्रश्न कुछ ऐसा था उस भिखारी का
जुड़ा था कुछ सत्य उसमें नेताओं का
पूछा उसने मुझसे जो मैं पूछता हूँ सबसे
अंतर हुआ भिखारी और नेताओं में कब से

भीख मांगते हैं भिखारी भी दर दर जाकर
मत माँगते हैं नेता भी घर घर आकर
झोली भिखारी भी भरता अपनी मांग मांग कर
घर अपना ही बनाते ये नेता मत मांग मांग कर

प्रश्न है ये एक ऐसा गूढ़ जिसका उत्तर है जटिल
कार्यशेली तो एक सी है दोनों की किन्तु कार्यस्थली विभिन्न
कार्यक्षेत्र में है भिन्नता, किन्तु उद्देश्य एक ही
एक मांग कर भोजन खाता है, तो दूसरा मांग कर देश।।



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