Friday, September 21, 2012

देश की पुकार

आज मुझे मेरा देश पुकारे 
कहे मुझसे तू मेरे पास मेरे दुलारे
जुड़े मुझसे उस अमिट इतिहास को देख
देख तू इसमें बसी पित्रादर की छाया
सुन तू प्रेम की मधुर वो झंकार
सुन तू अम्बर में छाए मेघों का मल्हार

मेरा देश मुझे रह रह पुकारे 
कहे बरखा की बूंदों के सहारे
निहारता था जहां मानस खेत खलिहान
धरा वो आज हो रही लहुलुहान
देख कितना पतन हुआ राजनीति में
कर रहे समय व्यर्थ भ्रष्ट नीतियों में

कहे मुझसे देश आज ये मेरा
चूका तू ऋण राज वो तेरा
जिस धरा पर जो तुने जन्म लिया
जिस धरा पर तुने कर्म किया
आज उस धरा का है तुझे ऋण चुकाना
संसद की अभद्रता से है उसे बचाना

कहे मुझसे मेरा देश यूँ आज
बचा तू भारत माँ की लाज
उछ्रंखल हुए लाल जिसके
कर रहे जो तुकडे इसके
धर्म जात की कर रहे राजनीति
राष्ट्र हित नहीं जिनकी नीति

कहे मेरा देश आज ये मुझसे
धन धन्य धरा का है तुझे बचाना
घर घर में हो हर कोई स्वदेशी
ना बन जाए यहाँ का बच्चा बच्चा विदेशी
पर राष्ट्र में जो धन मेरा पड़ा है
उसे ला देश हित का धर्म निभा

कहे मेरा देश आज कुछ ऐसा
राष्ट्र धर्म से नहीं बड़ा है पैसा||

No comments: