This Blog is collection of my poems that come to my mind on the situational feelings / thoughts that cross through my mind. They are either based on real life event or are based on inspirational line from my readings. They are just the work of art & have No connection to My personal Life in General. 20/11/2012 - Even though I had stated that my poems are just work of art, but some of my poems have been Presented Negatively so I have taken them off
Wednesday, December 14, 2016
विमुद्रीकरण पर सिकी राजनीति की रोटी
Effects of Demonetization
Thursday, December 8, 2016
कैसे करे अब स्वयं को चैतन्य
कैसे पहचान करें किसमे राम किसमे रावण समाया
कैसे स्वयं को कोई चैतन्य करे
जब भगवान का मोल भी यहाँ पैसों में धरे
नहीं मिलता बिन माया के कुछ संसार में
बिन माया अपने भी दिखाते हैं बेग़ानो में
कैसे करे अब स्वयं को हम चैतन्य
कि अब रहते हैं रिश्तों की क़ब्र में
कहाँ जाएँ हम ढूँढने अपनों को
कि बिन माया अपने भी दिखाते हैं बेग़ानो में
Wednesday, November 23, 2016
All in the Game
Did you ever hear the voice
The voice of Love
Did you ever hear the language
The language of Love
Did you ever witness that communication
The communication of Love
I'll bet, No is the answer
For the Love is never defined in words
The Game of Love is always played
On the turf of Hearts
Where some win some lose
But it never turns to War of Words
No language, no words, no voice
Can ever express true love
It's a sonet that flows with emotions
And only emotions are fair in the Game
इस दुनिया में
इस दुनिया में दर्द और भी है
कहीं भीड़ में एक दर्द और भी है
हर ओर मैं देखता हूँ दर्द का मंज़र
कि इस दर्द में तड़पे परवाने और हैं
दर्द किसका क्या है, इल्म नहीं मुझे
लेकिन दिखती दुनिया दर्द से सराबोर है
हर मोड़ पर सोचता हूँ मिलेगा मेहरबाँ कोई
कि महकाएगा इस ज़मीं को सुर्ख फूलों सा
लेकिन गुज़र सा जाता है मोड़ दर्द की आह में
और रह जाता है फिर वही मंज़र रहे दर्द का
Sunday, October 2, 2016
इन्तेहाँ
काश कि कुछ ऐसा होता
जिसमें कुछ खट्टा कुछ मीठा होता
हर लम्हा मैं उन्हें ही पूछा करता
गर उन्हें ज़रा सा भी मेरा इल्म होता
अब क्या कहें और किससे कहे
कि ना वो वज़ूद रहा ना रब का वास्ता
कहीं आब-ऐ-तल्ख़ है छुपा ज़िन्दगी में
तो कहीं अश्क-ऐ-फ़िज़ा भी खामोश है
अब तो एक ही सुरूर ज़िंदा है जहाँ में
कि कैसे कोई इन्तेहाँ इंतज़ार करे।
Friday, September 30, 2016
शुक्राना बद्दुआ का
बद्दुआ में भी तो शामिल है दुआ
तो क्या हुआ तुमने हमें बद्दुआ दी
कहीं तुम्हारे जेहन में दुआ के वक़्त
इस काफ़िर का नाम तो शुमार हुआ
कि ज़िन्दगी भर की बद्दुआओं में
इस काफ़िर का नाम लेकर
अपनी इबादत में ऐ ख़ुदा
देने वाला मेहरबाँ तो हुआ
गर दुआओं में मेरा नाम ऐ खुदा
तेरे इल्म में ना आया कभी
तो शुक्रगुज़ार हूँ मैं उनका
जिन्होंने बद्दुआ में नाम शुमार किया
कि ऐ खुदा, किसी बद्दुआ से ही सही
कभी तूने इस काफ़िर को देखा तो होगा
देखा तूने ही होगा कि नाचीज़ क्या है
देखा तूने ही होगा कि क्या देना है।।
Friday, September 23, 2016
मैं शिव हूँ, शिव् है मुझमें
Thursday, September 22, 2016
झुक कर चलना सीखो
मधुकर को मधु पीने से
कभी मधुमेह नहीं होता
मधुर भाषा में वार्तालाप से
कभी किसी को रंज नहीं होता
कभी किसी के मुख पर
सच बोलने से
रिश्तों के मायने नहीं बदलते
बदलते हैं तो केवल
मानव के विचार विस्मित होने को
मधुकर को मधु पीने से
कभी मधुमेह नहीं होता
कहीं कभी झुकने से
मानव का कद छोटा नहीं होता
होता है यदि कुछ छोटा
तो होता है विचारों का कुनबा
संकीर्णता विचारों के चलते
किसी का विकास नहीं होता
जीवन में झुक झुक चलने से
कोई मलाल नहीं होता
समय के सामने ना झुकने से
समय पर प्रहार नहीं होता
समय स्वयं बलवान है
कभी वाही जतलाएगा
जितना तुम उससे अकड़ोगे
उतना नीचे तुम्हें ले जाएगा
स्मरित केवल इतना कर लो
के तीर चलने को कमान पीछे हटती है
तोप का गोला दागने पर
तोप भी पीछे हटती है
मंदिर में नमन करते हो तुम झुककर
लेकिन मानवता के आगे झुकने को
तुम हुंकारते हो अकड़कर
फिर भी झुक कर चलने वालों की
जीवन में कभी हाट नहीं होती।
ज्ञान बंटोर ले
Tuesday, September 20, 2016
मृत्यु पर राजनीति
वीरगति को प्राप्त कर गए
परायण कर गए संसार से
देखो उनकी माता रोती है
पलकों में लहू के अश्रु लिए
अच्छे दिन को तुम तकते हो
उनकी वीरगति के सहानुभूति में
यदि अच्छे दिन मोदी लाएगा
तो परिभाषित करो अच्छे दिन को
लहू शास्त्रों का तब भी बहा था
जब रामराज्य था सतयुग में
अब तुम कलजुग में जीते हो
किसी की मृत्यु में अच्छे दिन खोजते हो
Monday, September 19, 2016
बहुत हो चुका परिहास
Friday, September 9, 2016
दरख़्त
शाख वो काट रहे, उसी शाख पर बैठ
कि कुदरत की नेमत पर कर रहे घुसपैठ
शाख पर हुई चोट से दरख़्त सकपकाया
आंधी के झोंके में उसने उस इंसां को गिराया
चोट लगी उसपर तो इंसां चिल्लाया
शर्मसार नहीं हुआ ना उसको समझ आया
उठा कुल्हाड़ा उसने दरख़्त पर चलाया
इस हिमाकत पर उसकी सरमाया भी गुस्साया
आसमाँ में बादल गरजे, धरती भी गरमाई
कुछ पलों उस मेहमाँ को माटी ने भींचा
उस दरख्त की जड़ों को उसके लहू से सींचा
भूला भटका था वो जिसका वजूद मिट गया
इतना भी ना समझा उसने की माटी में मिल गया
उसी दरख़्त के साए में मिला था उसको आराम
उसी दरख़्त के पत्तों से बिछा था दस्तरखान
काटने उस शाख को तू चला था इंसान
जिसपर लगे फलों की मिठास से था तू अंजान
Monday, August 29, 2016
Game of Love
हृदय पीड़ा
ता ज़िन्दगी मैं सुनता रहा
ता ज़िन्दगी मैं खामोश रहा
खामोश दर्द में जीता रहा
क़ि सोचता था कभी ज़िन्दगी में
मैं हाल-ए-दिल बयां करूँगा
सुनते सुनते होश खो गए
हाल-ए-दिल बयां ना हुआ
दर्द अपनी हद से आज़ाद हुआ
फिर भी शब्द जुबां पर ना आए
आज सोचा था मेरे अपने होंगे
जो मुझमें एक इंसां देखेंगे
शायद वो मुझे समझेंगे
कभी बैठ साथ मेरी सुनेंगे
जब प्लाट देखा मैंने ज़िन्दगी को
पाया, ता ज़िन्दगी मैं सुनता रहा
खामोशियों में जीत रहा
कहने को अब, ना कोई मेरा अपना रहा।।
Monday, August 15, 2016
When in Life
When in life I wanted to convey
Lost I was for those thoughts
When I wanted to say something
Lost I was for those words
It was a paradigm shift for me
It was a sea of change
Lost I was to learn the way
You wanted me to convey
It is my love for you today
That holds me by the bay
It is my love for your being
That hold me from fleeing
It is all about love and care
That I wanted to convey and share
But you never showed that willingness
To listen to me with promptness
Whenever I wanted to convey
I never found my way
To be next to you my love
To be in your arms to say!!
जीवन द्विविधा
कहने को बहुत कुछ था
लेकिन सुनाते किसको
जिन्हें जीवन का आधार समझा
उन्होंने हमें कभी ना समझा
जिस दर पर आज हम हैं
उस दर को खोलेगा कौन
जिस राह हम चल रहे हैं
उसपर राहगुज़र बनेगा कौन
कहने को बहुत कुछ था
किन्तु आज सुनेगा कौन
करने को भरोसा तो है
किन्तु हमपर भरोसा करेगा कौन
इष्ट को अपने हम पूजते हैं
किन्तु हमारा इष्ट है कौन
जिसे जीवन की डोर सौंपी थी
उसे हमारा बनाएगा कौन
कहने को बहुत कुछ था
किन्तु उन्हें बताएगा कौन
संग उनके रहना चाहते हैं
किन्तु उन्हें मनाएगा कौन!!
Thursday, July 28, 2016
कहानी हम जैसों की
Monday, July 4, 2016
कहने को बहुत कुछ था
Sunday, July 3, 2016
दूर निकल आए हैं
क्या तेरा खोया है?
ओम नमो गणपतये नमः
जय जय है जगदंबे
हे शिव
Depth
Lost
अल्पविराम
Until Death Do Us Apart
Until death do us apart
Thursday, June 23, 2016
तू
Wednesday, May 25, 2016
पथिक
सूखा आज हर दरिया
Tuesday, April 19, 2016
Confined Thoughts
Monday, March 28, 2016
नहीं तेरे लहू में वो रंग
Monday, March 21, 2016
Pain of Humanity
Sunday, March 20, 2016
हृदयोदगार
बरसों से यही सब चल रहा है
They Forget That
Monday, March 7, 2016
क्या घर मेरा बन जाएगा शिवाला
Sunday, March 6, 2016
तार आज धरा को
Wednesday, February 24, 2016
ख़बरों को हम बेचते हैं
We Have Had Enough
Tuesday, February 23, 2016
लहू के दो रंग
Monday, February 22, 2016
अभ्यास
जितना भी तुम अभ्यास कर लो
भारत नहीं तुम तोड़ पाओगे
प्रलय की भी शक्ति जोड़ लो
बाल बाँका नहीं कर पाओगे
ईश्वर ने है यह सृष्टि रचि
बनाया उसने यह भारत खंड
कितना भी तुम प्रयास करलो
रहेगा भारत सदैव अखंड
वर्षों से हुए बहुत प्रयास
किया इसने सब आत्मसात
जो भी आया यहां
रह गया यहीं का बनकर
जितना चाहे तुम उत्पात मचालो
कितना भी तुम प्रयास कर लो
ईश्वर ने है बनाया यह खंड
हम रखेंगे इसे सदैव अखंड।।