इस दुनिया में दर्द और भी है
कहीं भीड़ में एक दर्द और भी है
हर ओर मैं देखता हूँ दर्द का मंज़र
कि इस दर्द में तड़पे परवाने और हैं
दर्द किसका क्या है, इल्म नहीं मुझे
लेकिन दिखती दुनिया दर्द से सराबोर है
हर मोड़ पर सोचता हूँ मिलेगा मेहरबाँ कोई
कि महकाएगा इस ज़मीं को सुर्ख फूलों सा
लेकिन गुज़र सा जाता है मोड़ दर्द की आह में
और रह जाता है फिर वही मंज़र रहे दर्द का
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