कलम आज भीगी है अश्रुओं से
पत्तों की तरह बिखरे हैं विचार
अल्पविराम सा लग गया है जीवन में
अर्धमूर्छित हो चला है मष्तिस्क
ह्रदय में आज बसी है जीवनहाला
जीवन भी भटक गया है
हर राह अंधकारमय है
हर ओर छा रहा अँधियारा
कलम से आज निकल रही अश्रुमाला
पी रहा आज मैं अपनी ही जीवनहाला
अर्धचंद्र सा ग्रहण लगा है जीवन में
हर ओर छा रहा अंधियारा
विस्मय में डूबा, बैठा मैं हलाहल से घिर
नहीं दिखाई देता मुझे अब कुछ कहीं
ह्रदय में आज इतनी है जीवनहाला
कि सूर्य भी अर्धमूर्छित सा दिख रहा
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