Sunday, July 3, 2016

अल्पविराम

कलम आज भीगी है अश्रुओं से
पत्तों की तरह बिखरे हैं विचार 
अल्पविराम सा लग गया है जीवन में 
अर्धमूर्छित हो चला है मष्तिस्क 

ह्रदय में आज बसी है जीवनहाला
जीवन भी भटक गया है
हर राह अंधकारमय है 
हर ओर छा रहा अँधियारा 

कलम से आज निकल रही अश्रुमाला
पी रहा आज मैं अपनी ही जीवनहाला
अर्धचंद्र सा ग्रहण लगा है जीवन में 
हर ओर छा रहा अंधियारा 

विस्मय में डूबा, बैठा मैं हलाहल से घिर 
नहीं दिखाई देता मुझे अब कुछ कहीं
ह्रदय में आज इतनी है जीवनहाला
कि सूर्य भी अर्धमूर्छित सा दिख रहा 


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