कहते इसे कहानी घर घर की हैं
इसमें ना कोई अपना है ना पराया
पाना हर कदम पर तुमको धोखा है
यही बस इस कहानी का झरोखा है
कोई किसी का नहीं है यहाँ
सारे अपने आप से ही जूझ रहे
किसी को नहीं है समय यहाँ
सारे अपने ही ग़मों से लड़ रहे
कहते हैं इसे कहानी हर घर की
इसमें ना मैं हूँ कहीं ना तुम हो
पर है ग़मज़दा ज़िन्दगी इसमें
जिंदाई जो हम और तुम जीते हैं
हर किसी को चाह है यहाँ कुछ पाने की
नहीं चाहता गर कोई तो वो है देना
नहीं चाहता गर कोई तो वो है खोना
फिर चाहे खुद भी इनसे कुछ मांग ले
यह है कहानी घर घर की
कहते हैं इसे कहानी हर घर की
नहीं हैं इसमें हम और तुम
फिर भी यह कहानी है हम जैसों की॥
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