Thursday, July 28, 2016

कहानी हम जैसों की

कहते इसे कहानी घर घर की हैं 
इसमें ना कोई अपना है ना पराया 
पाना हर कदम पर तुमको धोखा है 
यही बस इस कहानी का झरोखा है 

कोई किसी का नहीं है यहाँ 
सारे अपने आप से ही जूझ रहे 
किसी को नहीं है समय यहाँ 
सारे अपने ही ग़मों से लड़ रहे 

कहते हैं इसे कहानी हर घर की 
इसमें ना मैं हूँ कहीं ना तुम हो 
पर है ग़मज़दा ज़िन्दगी इसमें 
जिंदाई जो हम और तुम जीते हैं 

हर किसी को चाह है यहाँ कुछ पाने की 
नहीं चाहता गर कोई तो वो है देना 
नहीं चाहता गर कोई तो वो है खोना 
फिर चाहे खुद भी इनसे कुछ मांग ले 

यह है कहानी घर घर की 
कहते हैं इसे कहानी हर घर की 
नहीं हैं इसमें हम और तुम
फिर भी यह कहानी है हम जैसों की॥ 

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