रक्त की आज फिर बानी है धारा 
फिर रहा मानव मारा मारा 
हीन भावना से ग्रसित अहंकारी 
फैला रहा घृणा की महामारी 
वर्षो बीत गए उसको समझाते 
हाथ जोड़ जोड़ उसे मनाते 
फिर भी ना सीखा वो संभलना 
आता है उसे केवल फिसलना 
सन सैंतालीस में खाई मुँह की 
सन पैंसठ में भी दिखाई पीठ 
सन इकहत्तर में खोया उसने अपना राज 
फिर भी कारगिल में दिखाए अपने काज 
बारम्बार उसे समझाया 
किन्तु उसे तनिक समझ ना आया 
करता है हर बार मनमानी 
पहुंचाई उसने इस बार उरी में हानि 
क्यों ना इस इस बार उसे हम दौड़ाएं 
उसका पाठ उसे ही पढ़ाएं 
बहुत हुई सेना की बलिदानी 
अब बता दो पराक्रम का नहीं कोई सानी 
बहुत प्राप्त कर चुके बेटे वीरगति 
अब और नहीं सहेंगे सिन्दूर की क्षति 
इस बार बदल दो इतिहास 
बहुत हो चुका सीमा पर परिहास 
दो बूंग लहुं उनका भी बहा दो 
कितना बल है सपूतों में दिखा दो 
अब और मत करो कोई देर 
कर दो सत्ता के लालची को तुम ढेर 
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