विष से भरा है आज मेरा प्याला
जीवन मंथन की है यह हाला
कटु है आज हर एक निवाला
विष से भरा है आज मेरा प्याला
कैसा है यह द्वंद्व जीवन का
हर पल है जैसे काल विषपान का
कैसा है यह पशोपेश मेरा
हर ओर दिखता मुझे विष का डेरा
ना मैं शिव हूँ ना है मुझमें शिव
ना धर सकूँ कंठ में विष की नींव
पी लूँ यदि हलाहल का यह प्याला
क्या घर मेरा बन जाएगा शिवाला
विष से भरा है आज मेरा प्याला
जीवन मंथन की है यह हाला
पी लूँ यदि मैं यह हलाहल
क्या बंद हो जाएगा जीवन का छल
कटु है आज हर एक निवाला
विष से भरा है हर एक प्याला
पी लूँ यदि मैं यह जीवन हाला
क्या घर मेरा बन जाएगा शिवाला
ना मैं शिव हूँ ना है मुझमें शिव
कैसे धरूँ कंठ में विष की नींव
नहीं बन सकता मैं शिव की प्रतिमा
नहीं है मुझमें अब इतनी महिमा
कैसा है यह द्वंद्व जीवन का
क्यों है हर पल मेरे विषपान का
कर भी लूँ यदि मैं विषपान
नहीं कर सकूँगा मैं जगत कल्याण॥
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