Monday, March 7, 2016

क्या घर मेरा बन जाएगा शिवाला

विष से भरा है आज मेरा प्याला 
जीवन मंथन की है यह हाला 
कटु है आज हर एक निवाला 
विष से भरा है आज मेरा प्याला 

कैसा है यह द्वंद्व जीवन का
हर पल है जैसे काल विषपान का 
कैसा है यह पशोपेश मेरा 
हर ओर दिखता मुझे विष का डेरा  

ना मैं शिव हूँ ना है मुझमें शिव 
ना धर सकूँ कंठ में विष की नींव 
पी लूँ  यदि हलाहल का यह प्याला 
क्या घर मेरा बन जाएगा शिवाला 

विष से भरा है आज मेरा प्याला 
जीवन मंथन की है यह हाला 
पी लूँ  यदि मैं यह हलाहल 
क्या बंद हो जाएगा जीवन का छल 

कटु है आज हर एक निवाला 
विष से भरा है हर एक प्याला 
पी लूँ  यदि मैं यह जीवन हाला 
क्या घर मेरा बन जाएगा शिवाला 

ना मैं शिव हूँ ना है मुझमें शिव
कैसे धरूँ कंठ में विष की नींव 
नहीं बन सकता मैं शिव की प्रतिमा 
नहीं है मुझमें अब इतनी महिमा 

कैसा है यह द्वंद्व जीवन का 
क्यों है हर पल मेरे विषपान का 
कर भी लूँ यदि मैं विषपान 
नहीं कर सकूँगा मैं जगत कल्याण॥ 

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