लहू तेरा बहा है आज
लुट रही कहीं तेरी अपनी लाज
नहीं किंतु तेरे लहू में वो रंग
नहीं उस लुटती लाज के कोई संग
कहीं दूर कोई धमाका हुआ
किसी का बाप, भाई, बेटा हताहत हुआ
छपा जैसे ही यह समाचार
गरमा गया सत्ता का बाज़ार
नहीं तेरे लहू से इनको कोई सरोकार
नहीं तेरे लहू में मतों की झंकार
नहीं है तू कोई अख़लाक़ या रोहित
तेरी मृत्यु नहीं करती इन नेताओं को मोहित
देते हैं सम्प्रदाय का रंग ये लहू को
जब बोटी पर सेकते ये मतों की रोटी को
नहीं तेरे लहू में सम्प्रदाय का वो रंग
जो कर दे नेताओं की चीर निद्रा भंग।।
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