This Blog is collection of my poems that come to my mind on the situational feelings / thoughts that cross through my mind. They are either based on real life event or are based on inspirational line from my readings. They are just the work of art & have No connection to My personal Life in General. 20/11/2012 - Even though I had stated that my poems are just work of art, but some of my poems have been Presented Negatively so I have taken them off
Saturday, November 21, 2015
ना आज कोई रुख़्सार
Sunday, November 15, 2015
कैसी ईश्वर की श्रिश्टी
Wednesday, October 21, 2015
How I wish
Please Come Back
Monday, October 12, 2015
नवरात्रों का त्यौहार
नेताओं का धर्म
सत्ता का लालच देखो
Saturday, September 26, 2015
If it Makes Sense
Your Void
कलम आज फिर आमादा है
वेदना विरह की
पिया मिलन
Friday, September 25, 2015
बिछड़ तोसे जिया नहीं जाए
आज पीह से मिलन की आस में
नैनो में बदरा छाए, बदरा छाए
आज फिर मिलन की आस में
कहें तोसे कैसे पिया
कहाँ कहाँ ढूंढे तुझे जिया, ढूंढे जिया.........
कहूँ कैसे, थामूँ कैसे, रोकूँ कैसे
नीर जो बरसे नैनो से, नैनो से नीर जो बरसे
बदरा छाए तोसे मिलन की आस में
नैना नीर बहाए तोहे देखन की आस में
बदरा छाए, नैनो से नीर बहाए
जिया नहीं जाए पिया
बिछड़ तोसे जिया नहीं जाए
क्यों दूर तू जाए मोसे क्यों दूर तू जाए .......................................................पियाा
घनघोर घटा छाई
मेरे मीत के मिलन की बेला आई रे
आई रे मिलन की बेला आई रे
घनघोर घटा छाई रे - २
मन व्याकुल हो चला, मन व्याकुल हो चला
ना जाने कौन चितचोर इसे मिला
जाने कौन दिशा संग ये किसके चला
मन व्याकुल हो चला - २
अब कित जाऊं मैं, कि घनघोर घटा छाई रे
किसको कहूँ मैं, कि मन व्याकुल हो चला
कैसे कहूँ, कित जाऊं घनश्याम
कि द्वार तेरे आया ओ मेरे राम, ओ मेरे राम
कैसे कहूँ किसे कहूँ, घनघोर घटा छाई
ओ घनश्याम, मिलन की बेला आई
कैसे मिलूं मैं कैसे कहूँ मनवा
कि मन व्याकुल हुआ, मिलन को -२
Tuesday, September 15, 2015
अपनो में बेगाने
Wednesday, September 2, 2015
शिवामृत
कि बुझ जाए जीवन की प्यास
किस डगर तू चलेगा राही
किस राह की कैसी आस
पाने को क्या पाएगा चलते
बैठ यहाँ, यहीं बनाएं एक शिवाला
क्यों ढूँढू मैं कहीं कोई मधुशाला
आ पीते हैं बैठ यहाँ शिवामृत का प्याला
आरक्षण का अभिशाप
आरक्षण का दानव
धर्मान्धता
Friday, August 21, 2015
पशोपेश
Thursday, August 20, 2015
धर्मनाश
Tuesday, August 18, 2015
We Have Arrived
आधी रात में न्यायपालिका खुली
धर्मनिरपेक्ष गुलाम
Are We Independent
Sunday, August 9, 2015
खामोशियाँ
Tuesday, July 28, 2015
कलाम को आखिरी सलाम
The Blast
Be in Sight
Tuesday, July 21, 2015
Standing Alone in the Crowd
Tuesday, July 14, 2015
कुछ तो लोग कहेंगे
Sunday, July 12, 2015
बेटी
Friday, July 10, 2015
It Just Rained
O'God, please know that we need water
O'God, please bless us as adequate and proper
But please ensure that the supply us ample
just to let the life survive and have supple
Thursday, July 9, 2015
अम्बा स्तुति
Why for You
Me!
जीवन से आशाएं
या जीवन से बनी आशाएं
किस बात को हम माने
किस डगर पर हम जाएं
देखें यदि जीवन को
तो लगता है नीरस बिन आशा के
किन्तु पहलू दूसरा देखें
तो जीवन से भी हैं आशाएं
जीवन की हर डगर पर
बीज आशा का बोते हैं
आगे बढ़ते हुए हम जीवन में
सफलता की आशा करते हैं
बिन आशा के जीवन अधूरा है
दिन आशा जीवन में अँधेरा है
आशाओ से भरा जीवन परिपूर्ण है
जीवन से आशाएं भी महत्वपूर्ण हैं॥
Thursday, June 18, 2015
धधकती ज्वाला में खोया है हर कोई
Wednesday, June 3, 2015
डर
वक्त का तकाज़ा
दिल में यादें बसी हैं
कसक बन गयी अधूरी तमन्नाएँ
वक्त का तकाज़ा है शायद
कि दवा भी आज दर्द दे गयी
यादों में आज भी ताजा है
वक्त वो, जो गुजर गया कहीं
यादों में आज भी ताजा है
वक्त वो जब हम तन्हां नहीं थे
एक था वक्त उन दिनों
जब दोस्तों के संग मिल बैठते थे
अब वो वक्त है संगदिल
कि दोस्तों का दीदार मुनासिब नहीं
एक वो वक्त था हमारा
कि तन्हाई को हम ढूंढते थे
और अब ये वक्त है आज का
जब तन्हाई में ज़िन्दगी बसर करते हैं
कि तब तन्हाई में वक्त गुजरता नहीं था
अब है कि हर आलम तन्हां तन्हां सा है
इंसानों के बीच रहकर भी
दिल हमेशा तन्हां तन्हां सा है
मशीनो के रहकर इन्सां
खुद एक मशीन बनकर रह गया है
ज़िन्दगी के मुकाम पर बढ़ते
खुद तन्हाई की मिसाल बन गया है
एक वो वक़्त था कभी हमारा
जिसकी यादें आज भी साथ हैं
आज ये वक़्त है कुछ ऐसा
जिसकी हर याद तन्हाई ही है!!!
Friday, May 1, 2015
नदिया
Saturday, April 25, 2015
मरता है तो मरने दो
Tuesday, March 10, 2015
दामन
यूँ ना जा तू आज दामन छोड़ कर
कि इस दामन में तेरा बचपन पला है
इस आँचल ने तुझे तपिश में ढंका है
इसी आँचल की छाँव में तेरा लड़कपन गुजर है
ना आज तू इस दामन को बेज़ार कर
ना दुनिया के सामने अपनी माँ को शर्मसार कर
ज़िद है गर तेरी कि तुझे खुद चाहिए
तो चल उस राह पर जहाँ खुदा तुझे ढूंढे
ज़िद गर तेरी है दौलत पाने की
तो चल उस राह पर जहाँ दौलत तुझे चूमें
ना जा तू आज यूँ दामन छुड़ा कर
कि कहीं तू दुनिया के थपेड़ों से झुलस ना जाए
माँ की ममता का यूँ ना उड़ा मखौल
कि कहीं तू माँ के अस्तित्व को ना मिटा दे।।
दोराहा
ज़िन्दगी के कैसे दोराहे पर खड़े हैं
की जिस और कदम बढ़ाएंगे नुकसान ही है
गम-ऐ-जुदाई गर एक तरफ है
तो रिश्तों के कच्चे धागे दूसरी ओर
अब चलें भी तो किस राह चलें
साथ दें भी तो कि किसका दें
आज अपने ही अपनों से बेगाने हैं
आज अपनों से ही हम बेआबरू हुए
दोराहे पर यूँ खड़े हैं अब हम
यूँ ज़िन्दगी से बेज़ार हुए से हैं हम
Wednesday, January 28, 2015
तरक्की की होड़
Tuesday, January 20, 2015
जीवन पत्तों सा
पत्तों से सीखो तुम ज़िन्दगी का अफ़साना
जीते है वो तुम्हें देने को स्वच्छ वायु
जीते हैं वो तुम्हें देने को फल और फ़ूल
देते हैं सारी उम्र वो दूसरो को
सूख कर भी वो करते हैं भला सबका
पेड़ उनको भले ही झाड़ कर गिरा दें
पत्ते फिर भी खाद बन पेड़ के ही काम आते हैं
कुछ भी हो रिश्ते तो पत्तों से सीखो
जड़ तो सिर्फ पेड़ को पानी सींचती है
जड़ तो केवल पेड़ को तान कर रखती है।
Sunday, January 18, 2015
ज़िन्दगी की ज़ुत्सजु
ज़िन्दगी को ही जीने की चुनौती दिए बैठे हो
ज़िन्दगी की हर चाल तुम्हारे लिए है
और तुम उस चाल पर भी अपनी चाल लिए बैठे हो
क्या ज़ुल्म ज़िन्दगी तुमपर करेगी
तुम खुद अपनी हार की माला लिए बैठे हो
ज़िन्दगी से इस द्वंद्व में लड़ ज़िन्दगी से
तुम खुद अपनी असफलता संवार बैठे हो
गर गिरेबां में अपने झाँक कर देखोगे
हर लुत्फ़ ज़िन्दगी से उधार लिए बैठे हो