बैठे सहर से सहम कर
सोच रहे हैं अपने करम
रहना है हमें इसी जहाँ में
जहां बदलते हर कदम धर्म
भूल कर जीता है इंसान
इंसानियत का मूल धर्म
उसका धर्म है सबसे ऊँचा
पाल लिया है बस ये भ्रम
प्यार मोहब्बत और जज़्बात
नहीं है आज इनका कोई मोल
धर्म के नाम पर यह भी कह दिया
नहीं है ये दुनिया गोल
धर्म के नाम पर आज इंसान
बन गया है दुश्मन जहाँ का
धर्म रक्षा के नाम पर
रास्ता पकड़ लिया है धर्मनाश का
भूल गया है आज इंसान
धर्म से नहीं है उसका प्रारूप
बोल गया है आज इंसान
धर्म लेता है उसका ही रूप
छोड़ साथ इंसानियत का
बन गया है वो हैवान
प्यार मोहब्बत इस इस दुनिया में
फैला रहा वो अपना आक्रोश
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