Thursday, August 20, 2015

धर्मनाश

बैठे सहर से सहम कर 
सोच रहे हैं अपने करम 
रहना है हमें इसी जहाँ में 
जहां बदलते हर कदम धर्म 

भूल कर जीता है इंसान 
इंसानियत का मूल धर्म 
उसका धर्म है सबसे ऊँचा 
पाल लिया है बस ये भ्रम 

प्यार मोहब्बत और जज़्बात 
नहीं है आज इनका कोई मोल 
धर्म के नाम पर यह भी कह दिया 
नहीं है ये दुनिया गोल 

धर्म के नाम पर आज इंसान 
बन गया है दुश्मन जहाँ का 
धर्म रक्षा के नाम पर 
रास्ता पकड़ लिया है धर्मनाश का 

भूल गया है आज इंसान 
धर्म से नहीं है उसका प्रारूप 
बोल गया है आज इंसान 
धर्म लेता है उसका ही रूप 

छोड़ साथ इंसानियत का 
बन गया है वो हैवान 
प्यार मोहब्बत इस इस दुनिया में 
फैला रहा वो अपना आक्रोश 

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