Friday, August 21, 2015

पशोपेश

सामने मेरे इतना नीर है 
बुझती नहीं फिर भी मेरी प्यास है 
जग में बहती इतनी बयार है 
रुकी हुई फिर भी मेरी स्वांश है 

साथ मेरे अपनों की भीड़ अपार है 
फिर भी जीवन में एज शुन्य है 
चहुँ और फैला प्रकाश है 
फिर भी जीवन यूँ अंधकारमय है 

नहीं जानता जीवन की क्या मंशा है 
नहीं जानता और क्या मेरी चाह है 
सोच रहा आज मैं खड़ा हर दोराहे पर 
किस ओर किस डगर मेरी राह है 

आशा निराशा के बीच झूल रहा आह मैं 
पशोपेश में सोच रहा आज मैं 
किसका साथ आज दूँ मैं 
किसका हाथ पकड़ अपनी राह चुनू मैं

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