सामने मेरे इतना नीर है
बुझती नहीं फिर भी मेरी प्यास है
जग में बहती इतनी बयार है
रुकी हुई फिर भी मेरी स्वांश है
साथ मेरे अपनों की भीड़ अपार है
फिर भी जीवन में एज शुन्य है
चहुँ और फैला प्रकाश है
फिर भी जीवन यूँ अंधकारमय है
नहीं जानता जीवन की क्या मंशा है
नहीं जानता और क्या मेरी चाह है
सोच रहा आज मैं खड़ा हर दोराहे पर
किस ओर किस डगर मेरी राह है
आशा निराशा के बीच झूल रहा आह मैं
पशोपेश में सोच रहा आज मैं
किसका साथ आज दूँ मैं
किसका हाथ पकड़ अपनी राह चुनू मैं
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