Saturday, May 26, 2012

उठो भारत के निर्लज्ज कपूतों

पावन धरा पर राज करते कपूतों
अब तो निद्रगोश से निकलो
भटक रहा राष्ट्र में हर पथिक
अब तो अपने लोभ त्यागो


उठो भारत माता के निर्लज्ज कपूतों
कुछ तो संकोच करो
राष्ट्र निर्माण कार्य में
कुछ तो नव प्राण भरो


नव निर्माण कर इस धरा पर
जन जीवन का मार्ग दर्शन करो
उठो धरा के निर्लज्ज कपूतों
कुछ तो जीवन में संकोच करो


भोर भई नव दिवस की
नब युग का तुम संचार करो
प्रगति की ज्योत जला 
दुर्गम अंधियारा दूर करो


उठो धरा के निर्लज्ज कपूतों
कुछ तो अब तुम काज करो
राष्ट्र निर्माण में ध्या लगाकर
जन जन में नयी उमंग भरो


आज तुम अपने जीवन में
नयी एक तरंग भरो
गाँव गाँव में जाकर तुम
जन जीवन से न्याय करो


हर गाँव का अपना दुःख है 
हर गाँव का अपना ही रोना
उठो धरा के निर्लज्ज कपूतों
आज तुम उनके अश्रु पोंछो


नवयुग के संचार में तुम
वीणा सी एक तान भरो
नए रूप में, नए रंग में
प्रगतिशील राष्ट्र का निर्माण करो


उठो धरा पर राज कर रहे कपूतों
इस धरा का श्रृंगार करो
भविष्य सबका मंगलमय हो
इस प्रकार कुछ श्रजन करो


उठो भारत के निर्लज्ज कपूतों 
राष्ट्र कल्याण के लिए तुम 
श्रजन करो विद्या के पावन मंदिर
उठो धरा के निर्लज्ज कपूतों 
शत शर दीप जला ज्ञान के
सुनहरे भविष्य का आह्वान करो
उठो धरा के निर्लज्ज कपूतों
त्याग लोभ नवयुग का आह्वान करो||

1 comment:

Anonymous said...

naa to ye neta naa bharat kee jantaa ko jaagruk hona hai
bas kuchh der roenge cheekhenge chillaenge fir apne mein magan ho jaaenge