Tuesday, May 8, 2012

चंद तकल्लुफ भरे पैगाम

कुछ शेर कभी कहीं सुने या पढ़े थे| ठीक से याद तो नहीं, पर सोचा कि कुछ चलते फिरते शायरों कि चलते फिरते पैगाम की तरह इन्हें भी आपके सामने पेश किया जाए|  हालांकि मैं खुद इनसे वाकफियत नहीं रखता, लेकिन फिर भी जरा मुलाहिजा तो फरमाइये कि चुनिन्दा शेर ऐसे भी कहे जाते हैं :)  अक्सर गाड़ियों के पीछे :))


आब-ऐ-तल्ख़ भी नहीं निकालेंगे
चाहे जितना तडपाओ तुम हमें
कि निगाहों में तुम्हें कैद किया है
यूँ ना बह जाने देंगे अक्स को तुम्हारे
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खून-ऐ-जिगर अभी स्याह नहीं हुआ
कि खुदा की इबादत से मुंह मोड लें
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गर चिलमन से तू अपनी सीरत छुपा सके
तो ऐ बेवफा ज़रा चिलमन तो बेदाग़ ले ले
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कायनात में गर तेरी कोई जगह नहीं
तो ऐ हुस्न-ऐ-जाना, हमें मौत ही दे दे
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