धीर धर बैठे हैं धरा पर
बादलों की ओढ़ चादर
ना अब चाह है सुरबाला की
ना है कोई चाह मधुशाला के
अधरों पर अब है देव मंत्र
मष्तिष्क में है निर्मोह का तंत्र
साधू बन कर रहे हैं तपस्या
ना है अब जीवन में कोई आस
अटल है अब मेरा ये प्रण
नहीं हारना है जीवन रण
बहुत बहा नैनों से नीर
बहुत हुआ जीवन अधीर
निर्मोही बन करना है बसेरा
निकल अंधियारे से देखना है सबेरा
बादलों की ओढ़ चादर
ना अब चाह है सुरबाला की
ना है कोई चाह मधुशाला के
अधरों पर अब है देव मंत्र
मष्तिष्क में है निर्मोह का तंत्र
साधू बन कर रहे हैं तपस्या
ना है अब जीवन में कोई आस
अटल है अब मेरा ये प्रण
नहीं हारना है जीवन रण
बहुत बहा नैनों से नीर
बहुत हुआ जीवन अधीर
निर्मोही बन करना है बसेरा
निकल अंधियारे से देखना है सबेरा
1 comment:
aankhein khol ke baitho, batti jala ke baitho aur dekho gyaan prakaash
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