Saturday, May 26, 2012

शत्रु का उन्माद

हिमालय की चोटी से शत्रु ने ललकारा है
आज बता दो बल कितना है भारत माँ के वीरों में
सीमा लांघ शत्रु चढ़ आया आज तुम्हारे द्वारे
मचा रहा इस धरती पर वो उद्दंड उत्पात

रणक्षेत्र में हुआ कोलाहल जागो भारत के वीरों
जाग अपनी निद्रा से भारत माँ की पुकार सुनो
लगा हुंकार रण की शत्रु ने तुम्हें ललकारा है
कर्णभेदी तोपों से उसने धरती का सीना चीर है

पंजाब में मचा उत्पात, संसद पर किया आक्रमण
गुजरात में कर हिंसक कृत्य, मुंबई का बहाया लहू
बाँट काश्मीर को धर्म के नाम पर, युद्ध का उन्माद किया
हिमालय की चोटी से आज फिर रण को ललकारा है

उठो भारत माँ के वीर सपूतों, बता दो आज शत्रु को
बल कितना है धरा के वीरो में, शत्रु को ये जता दो
याद उसे दिला दो कि हर बार उसने मुंह की खाई है
सन अडतालीस से कारगिल तक जग में हुई उसकी हंसाई है

आज बता दो उसको, बल भारत माँ के सपूतों का
आज चेता दो उसको रण क्षेत्र का सन्नाटा
दिखा दो उसको कितना बल तुम्हारे बाजुओं में है
जतला दो कि इस माटी को छूने वाला माटी में मिल जाएगा

उठो भारत माँ के सपूतों कि शत्रु ने आज ललकारा है
मचा युद्ध का कोहराम, रणक्षेत्र से तुम्हें पुकारा है
आज बता दो उसको की वो सदैव ये याद रखे
प्रयत्न कभी किया काश्मीर में, लहू के वो सागर पाएगा

पावन इस धरा पर अपने उद्दंडता पर पछताएगा
इस माटी पर जहां पैर रखेगा, वहीं ढेर हो जाएगा
हर बार हमसे टकरा कर वो चूर चूर हो जाएगा
इस माटी को छूने वाला माटी में मिल जाएगा




1 comment:

Anonymous said...

baarud bahut dekha, dekhi unsase dher hui lashein
ae khuda kaash tu mera saath deta
doodh yaad dila dete unko chhati ka
ki naa jaane kis ghadi mein bulaava aaaya tera
naa mein desh ka raha naa pahuncha tere darr