जिंदगी से दूर जिंदगी को रुखसत करने चला हूँ मैं
आज तेरी दुनिया से दूर चला हूँ मैं
खुश रहे तू, आबाद रहे तेरी दुनिया
अब और नहीं चाहत, तुझसे जुदा हो चला हूँ मैं
चाह कर भी तेरे साथ ना चल सका
ख्वाहिश थी पर तुझे ना पा सका
कोशिश थी मेरी कि हासिल तुझे करूँ
पर किस्मत को कौन सीने से बाँध सका
तुझसे दूर जिंदगी को रुखसत करने चला
आज मैं मोहब्बत की कब्र खोदने चला
सोचता था एक दिन शायद कभी
तू मोहब्बत के माने समझेगी
सोचता था कभी शायद
जिंदगी में तू मेरी अहमियत जानेगी
ना जानता था कभी इस कदर
तू मेरी मोहब्बत को बेआबरू करेगी
न कभी सोचा इस कदर
कि तू मेरी मोहब्बत को बेज़ार करेगी
कि आज मैं तुझसे दूर जिंदगी को रुखसत करने चला
आज मैं अपनी मोहब्बत की मजार बनाने चला
जा ऐ हुस्ना जी तू अपनी जिंदगी
जा तू करके रुसवा मेरी मोहब्बत
गर जिंदगी में हो कभी ये एहसास तुझे
गर लगे तुझे मेरी मोहब्बत का सिला पाक
तो बस इतना एहसान करना
मेरे नाम का तू सजदा ना करना
ना ढूंढना मुझे तू इस जहाँ में कभी
कि ना दे पाऊंगा तुझे मैं कुछ
कि आज मैं जिंदगी को रुखसत कर चला हूँ