Thursday, January 19, 2012

दर्द-ऐ-दिल

दिल यह कमज़ोर हुआ जाता है
तेरी याद में बेचैन हुआ जाता है
कदम उस राह की ओर बढे जाते हैं
जिस ओर तेरा अक्स नज़र आता है

न कोई मंजिल है न ही कोई मंज़र
सफर ये सिफर की कगार तक चला जाता है
अस्ताफ मेरे अपना दीदार करा दे
कि अश्क अब शबनम के नज़र आते हैं

असरार हूँ मैं वक्त-ए-बेवफाई का
अब्द मैं अस्काम का हुए जाता हूँ...
आइना भी अब असरार दिखाए जाता है
अहज़ान  मेरी कब्र का असास बनाये जाता है

आगाज़ हुआ था जिस मोहब्बत का....
आतिश सा उसका आकिबत नजर आता है
आज़र्दाह मेरी आजमाइश किये जाता है
दोज़ख मेरी दुनिया हुए जाता है

कि मेरे अस्ताफ अपना दीदार करा दे
ये दिल तेरी तन्हाई में डूबा जाता है||

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