आहट जो हुई दरवाजे पर
उनके आने का एहसास हुआ
जब नज़रें उठीं उनकी ओर
उनसे ही निगाहें चार हुई
कुछ ख़ामोश थी उनकी निगाहें
कुछ खामोश हुई हमारी नज़र
एक लम्हा कुछ यूँ ही गुजारा
खामोश निगाहों की गुफ्तगू में
कदम उनके भी लडखडाए
ज़रा हम भी डगमगाए
इश्क का ये सफर
था ही पथरीली राह में
ना आह निकली उनकी जुबां से
ना हमने कभी उफ़ तक की
दास्ताँ यूँ ही बन पड़ी
जब हमारी निगाहें चार हुई
उनके आने का एहसास हुआ
जब नज़रें उठीं उनकी ओर
उनसे ही निगाहें चार हुई
कुछ ख़ामोश थी उनकी निगाहें
कुछ खामोश हुई हमारी नज़र
एक लम्हा कुछ यूँ ही गुजारा
खामोश निगाहों की गुफ्तगू में
कदम उनके भी लडखडाए
ज़रा हम भी डगमगाए
इश्क का ये सफर
था ही पथरीली राह में
ना आह निकली उनकी जुबां से
ना हमने कभी उफ़ तक की
दास्ताँ यूँ ही बन पड़ी
जब हमारी निगाहें चार हुई
2 comments:
'कदम उनके भी लडखडाए
ज़रा हम भी डगमगाए
इश्क का ये सफर
था ही पथरीली राह में'
sir these line were awesome......
Thanks Dost
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