Thursday, January 12, 2012

पैगाम

परेशाँ गर वो हुए रातों में जाग कर
तो ये उनकी दीवानगी नहीं
तेरी जुल्फों की क़यामत थी
गर उसे तुझसे इश्क हुआ
तो ये उसकी नासमझी नहीं थी
था ये तेरी अदाओं का गुनाह
गर उन्होंने काटी ये रातें ख्वाबों में
तो ये उनके ख्वाबों की ताबीर नहीं
थी ये तेरी बेफवाई का सबूत
ना हंस यूँ उनकी बेचैनी पर बेहया
कि उनका जनाजा निकलेगा
कर रुख तेरी ही डोली की ओर

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