ढूंढता हूँ बहुत दिनों से मैं
गहरे सागर में एक मोती
तपिश बहुत की है मैंने
जीवन अपना सवारने की
तपन तो हुई बहुत मुझे
गहन चिंतन मनन में
दृढ़ निश्चय कर फिर भी
चला मैं जीवन डगर पर
अडचने बहुत सी आईं
हुई बहुत सी द्विविधा
किन्तु अडिग रहा मैं
अपने ही प्रयत्न में
ना मुझे अब विजय की चाह है
ना है हारने का कोई भय
लक्ष्य है अब कोई मेरा
तो है सात्विक जीवन
गहरे सागर में एक मोती
तपिश बहुत की है मैंने
जीवन अपना सवारने की
तपन तो हुई बहुत मुझे
गहन चिंतन मनन में
दृढ़ निश्चय कर फिर भी
चला मैं जीवन डगर पर
अडचने बहुत सी आईं
हुई बहुत सी द्विविधा
किन्तु अडिग रहा मैं
अपने ही प्रयत्न में
ना मुझे अब विजय की चाह है
ना है हारने का कोई भय
लक्ष्य है अब कोई मेरा
तो है सात्विक जीवन
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