Tuesday, January 24, 2012

चंद अल्फाज़ - महफ़िल में शायर की रुसवाई पर

एक महफ़िल कि खामोशी, एक शायर का इन्तेकाल हो सकती है|  उसपर चंद अल्फाज़ ज़ेहन में आये थे, पेश करता हूँ -



नगमें अफसानों के गाते हो और हमें दिवाना कहते हो
अरे हमने दिल दिया है, किसी का दिल तोडा तो नहीं
 
हमें बेवफा, बेगैरत, बेज़ार क्या कहते हो
हम किसी के दिलों से, एहसासों से नहीं खेलते
 
ज़रा नगमें अपने एक बार तुम देखो
उनके हर लफ्ज़ दिलों से, एहसासों से खेलते हैं
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यूँ हमें बेगैरत ना कीजे कातिल
कि महफ़िल में हम तन्हाई गुज़ार आये हैं  
 
बेजार, बेआबरू होकर हम वहाँ से रुखसत हुए
सोचते हैं कि कलम को खामोश करने का वक्त आया है  

हमारी जुबां से कलाम बहुत पढ़ लिए 
अब तन्हाई में में खामोश रहने का वक्त आया है   

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तुम्हे  जानने की कभी थी हमें ख्वाहिश 
और आज तुम्हे भुलाने को जी चाहता है
कभी हमारी इल्तजा थी तुम्हारे साथ जीने की
और आज तुम्हारे साथ जीने से दिल डरता है 
कभी तुम हमारे जज्बातों से खेले हो 
और आज हमपर जान निसार करते हो
यूँ तकल्लुफ ना करो तुम इश्क का 
कि तुम्हारी नज़रों से खून-ऐ-जिगर बहता है


देवस्थली का मरघट

काव्य की इन पंक्तियों में
लहू के दो रंग दिखते हैं
शिव शम्भू की इस धरती पर
नरमुंड और कंकाल ही दिखते हैं

अग्नि जो आज प्रज्वल्लित हुई
कर रही नरसंहार है
विस्फोटों की इस गर्जन से
गूँज रही प्रकृति अपार है...

मुकुट भारत के शीश का
आज रक्त से सराबोर है
देवों का निवास था जो कभी
शान्ति का वहाँ अकाल है

इतने बरसों जो घर था मेरा
नहीं मिलता अब वहाँ बसेरा
अपने ही निवास क्षेत्र में जाकर
लगता है मैं परदेसी हूँ

धरा की इस धरोहर पर
गर्व है भारत को जिसपर
काल का आज ग्रास बना है
रक्तपान का थाल बना है

देवों का निवास था जो कभी
शान्ति का वहाँ अकाल है
शिव शम्भू की इस धरती पर

आज अशांति भरा काल है

Sunday, January 22, 2012

स्मृति

शहर छोड़ चले हम
चले अज्ञात अंधियारों में
स्मृति बस रह गयी हैं
उन गलियों चौबारों की

जहाँ खेल हम बड़े हुए
जहाँ सीखा हमने चलना
बोल चाल की उस दुनिया से
चले होकर हम अज्ञानी 

राह बदली शहर बदले
बदली हमारी चाल भी
ना बदला कुछ तो
थी वो हमारी स्मृति ही

भूलना चाहा बहुत हमने
चाह थी कुछ ऐसी ही
छोड़ चले थे बांधवों को
छोड़ आये हम खुद को भी

हिम की धधकती ज्वाला

हिम की सिल्लियाँ उडी हवा में
साथ उडी कुछ मानव देह भी
सर्द इस संध्या में गूंज उठी घाटी
गर्जन हुई ऐसी, दहल गयी दिल्ली भी

श्वेत चादर से ढंकी ये घाटी
थी कभी शांती का प्रतीक
आज सजी है ये लहू से
धधकती कुछ ज्वाला सी

ज्वाला जो प्रज्वलित करती
देवों की दीपमाला को
आज प्रज्वलन कर रही वो
इस धरा पर गंगा की धारा को

घिर गया है आतंक यहाँ पे
छुप गयी है मानवता भी
देव बसा करते थे जहाँ पे
तांडव कर रहे दानव ही

हो रहा यहाँ धर्म के नाम पर
कुछ और नहीं अधर्म का मर्म है
कब जागेगा मानव यहाँ पे
कब वो सुनेगा अंतर्मन की


हिम की सिल्लियाँ उडी हवा में
साथ उडी कुछ मानव देह भी
देव बसा करते थे जहाँ पे
तांडव कर रहे दानव ही

हाल-ऐ-बयाँ

ज़र्रा रोशनाई जिसे कहते हो तुम
कतरा-ऐ-खून-ऐ-जिगर है
दीवानापन जिसे कहते हो तुम
तुम्हारी मोहब्बत का आलम है

कतरा कतरा जीते हैं बिन तुम्हारे
तन्हा तन्हा सफर करते हैं
यादों में आज बसे हैं वो दिन
जो बस बेसहारा गुज़ारे हैं

गर सोचते हो तुम कुछ यूँ
कि हम बेज़ार कैसे जीते हैं
तो ज़रा झांको अपने पहलू में
जहाँ हम दिल हार बैठे हैं

मेरा देश

तकनिकी रूप में प्रगतिशील है मेरा देश
फिर भी विचारात्मक रूप से गरीब है
आज विश्व में द्वितीय सबसे बड़ा है ये
फिर भी गरीबों से भरा है मेरा देश

कमी नहीं है धन और धान्य की यहाँ
किन्तु जमाखोरों की तिजोरी में भरा है
हैं बहुत सी संपत्ति, धरोहर मेरे देश की
किन्तु अन्य देशों में जमा है सब

कमी नहीं है शास्त्र ज्ञान की मेरे देश में
किन्तु आज भी पढ़े लिखे गंवारों से भरा है ये
प्रगतिशील हैं नौजवान यहाँ के
फिर  भी बेरोजगारों से भरा है मेरा देश

अन्नपूर्णा को पूजते हैं लोग यहाँ के
फिर भी भुखमरी से मरते हैं वो
कमी नहीं है भोजन की यहाँ पे
बहुत व्यर्थ फेंका जाता है कूड़ेदानों में

पूजते हैं कन्या को देवी की तरह
फिर भी भ्रूण ह्त्या की शिकार है वो
लक्ष्मी का ओहदा देते हैं पत्नी को यहाँ
फिर भी पैरों की जूती समझते हैं उसको


तकनिकी रूप में प्रगतिशील है मेरा देश
फिर भी विचारात्मक रूप से गरीब है
बड़े प्रगतिशील नेता हैं यहाँ के
पांच साल में देश की धरोहर से जो .....
........................अपने घर भर लेते हैं!!

News Reel

Sitting in the comfort of my room
Listening to news and cursing groom
For I heard he burnt the bride
For dowry that hurt his pride
Alas!! was the word I could say
I feel sad for her going away!!

But that was not the only thing
Next in line was a far cry to sing
Demonstrator threw a shoe
On a Leader, out there to woo
Wow!! was the way I could exclaim
What do people do to get some fame?

Another news was more of terror
A thing that raises my anger
They went on for yet another blast
This news just left me aghast
Why do they on the name of religion
Kill innocent citizens of this nation?

Then came in the Breaking News
This was about a Politician & the Crews
It shared yet another Scam and Mess
The way they stashed Money and Cash
They just had all their way
To fill their coffers and sway away!!

I changed the Channel to listen something better
Started listening to a hosts Chit Chatter
But then that didn't do much of a magic
As the host stated the incident that was tragic
There she was talking a case & yelling
Someone's rape story she was telling..

If this is what we call the news
If this is it that gets brewed
It just doesn't make one feel better
It seems to be hell of ugly platter
It's not something that glitters like gold
It's not for what God made us so bold!!

Saturday, January 21, 2012

आलम-ऐ-मोहब्बत

नज़रें हमारी जो उठीं, नज़ारे ना दिखे
गर कुछ दिखा तो उनके चेहरे का नूर
किन निगाहों से हम उन्हें देखें
कि दिखते हैं वो इश्क में चूर

उन्हें देख उनकी निगाहों को ना देखें
कि उनमें हमारा ही अक्स नज़र आता है
गर हया-ऐ-मोहब्बत में पलकें झुकाएं
तो पैमाना-ऐ-शबनम में उनका नूर नज़र आता है

नजदीकियां तो हैं पर चिलमन का पर्दा है
उनसे दूर हुए तो जेहन में उनकी आहट का खटका है
ना जाने खामोश लबों से वो क्या कुछ कह गए
अपनी निगाहों से हमें इश्क का जाम पीला गए

सोचते हैं उनके खामोश लबों को चूमना
पर उनकी कातिल मुस्कान में हम खो जाते हैं
वो बेखयाली में सोते हैं इस कदर हमारे दामन में
कि हम उनके तसव्वुर में खोये जाते हैं

उनकी मोहब्बत का आलम है कुछ ऐसा है
कि उनके आगोश में हम खुदको भुलाए जाते हैं
वो जाग ना जाए, यह सोच कर
हम अपनी धडकनों को दबाये जाते हैं




अंदाज़-ऐ-लफ्जात

चंद लाफ्जात ऐसे होते हैं, जिन्हें सुन कर रूह से एक आह निकलती है.....आज ऐसे ही कुछ कलाम पढ़ा तो एक रूह कि आह पर कुछ लफ्जात हमारे भी निकल पड़े....  पेश-ऐ-नज़र है वो चंद लफ्ज़ जिन्होंने हमारे कलाम को जन्म दिया -
बयाँ ना कर पाई ज़ुबान जो लड़खड़ाई
हम पे इल्ज़ाम बेवफ़ाई का!
नज़र मिलाया होता कभी तो एहसास होता
मेरी वफाए इबादत की गहराई का
"अजनी"
अब इन्ही लफ़्ज़ों पर हमारा कलाम कुछ ऐसा बना -

जान पाते वो हमारी इबादत
गर नज़र मिलाने का मौका देते
कि हमारी हया से झुकी पलकों को
बेवफाई का इल्जान दे गए

ना ये जाना, ना ये समझा
कि हया उनसे इश्क की थी
ना कभी हमसे ये पूछा
क्यों रोशन हमारी निगाहें हुई

आज देखते हैं हमें हिकारत से
जैसे खेलें हों हम उनकी अस्मत से
गर ना समझ सके हमारी मोहब्बत
तो हमें बेवफा तो ना कहते जाते

Friday, January 20, 2012

निवेदन

जीवन में ये स्थिरता ये ठहराव क्यों है
क्यों लगता है कि कुछ कम है
तेरे आने से पहले जो ना था
तेरे आने के बाद आज सब है

यदि आज कुछ कहीं कम है  
तो है तेरे आलिंगन की अनुभूती
है  वो मधुर मध्धम वाणी के बोल
कम है आज समय तेरे साथ बिताने को

ज्ञात है मुझे तेरी हर असंतुष्टी
ज्ञात है मुझे तेरा हर कष्ट
पर मैं कर सकता हूँ केवल निवेदन
कि रख तू थोडा और संयम

कुछ परिस्तिथीयाँ तो कुछ भाग्य
नहीं मेरे नियंत्रण में
एक कठपुतली हूँ आज मैं
जीवन के इस नाट्य में

कुछ कर सकता हूँ मैं आज यदि
तो कर सकता हूँ केवल निवेदन
लगा अभिलाषाओं पर आज अंकुश
समय बलवान है ना कर तू .....
.................प्रतिस्पर्धा इससे

Thursday, January 19, 2012

दर्द-ऐ-दिल

दिल यह कमज़ोर हुआ जाता है
तेरी याद में बेचैन हुआ जाता है
कदम उस राह की ओर बढे जाते हैं
जिस ओर तेरा अक्स नज़र आता है

न कोई मंजिल है न ही कोई मंज़र
सफर ये सिफर की कगार तक चला जाता है
अस्ताफ मेरे अपना दीदार करा दे
कि अश्क अब शबनम के नज़र आते हैं

असरार हूँ मैं वक्त-ए-बेवफाई का
अब्द मैं अस्काम का हुए जाता हूँ...
आइना भी अब असरार दिखाए जाता है
अहज़ान  मेरी कब्र का असास बनाये जाता है

आगाज़ हुआ था जिस मोहब्बत का....
आतिश सा उसका आकिबत नजर आता है
आज़र्दाह मेरी आजमाइश किये जाता है
दोज़ख मेरी दुनिया हुए जाता है

कि मेरे अस्ताफ अपना दीदार करा दे
ये दिल तेरी तन्हाई में डूबा जाता है||

चिलमन

कुछ यूँ ही बदला है खयालों में
कि आज चाँद भी छुपा है बादलों में
इन्तेज़ार था जिनके आने का
ना इल्म हुआ हमें उनके आहट का

यूँ  छुपे थे वो उस चिलमन में
जैसे आफताब छुपा हो पलकों में
ना हमारी नज़र उस ओर उठी
ना उनके कदम हमारी ओर बढे

ना जानते थे हाल-ऐ-दिल उनका
ना कभी जान पाते एहसासउनका
गर उन्होंने हमारा हाथ ना थामा होता
गर कभी हम उन्हें देख ना पाते


दूरियां फिर भी सिमट ना पाई
तकाजा-ऐ-महफ़िल हम ना समझ पाए
ना चाह कर भी ऐ खुदा
उनकी डोली को देकर कान्धा आए


कि अब सोचता हूँ  हर सूं ऐ खुदा
गर मांगू तुझसे तो क्या मांगू
ना तू उनको मेरा अक्स बना सका
ना तू उस चिलमन की दूरी मिटा सका||

Show Down Under - Indian Cricket

Members of Indian Cricket team
Seem to be licking the cream
There show Down Under in Australia
Reminds me of a folk dance Kalbelia

All I get to know from the news
They are all tucked in their crews
Dancing to the tune of chin music
Played by OZ bowlers not on mosaic

Their below par dismal performance
Count to shame not to innocence
All that they have been doing
Rather than standing tall they are bowing

This is not for which they are known
Its all disgrace what they have shown
None of them have displayed the knock
All of them appear to be ship on the dock

For them it might be loss of game
But of the nation of millions it's a shame
The team once was high on the rank
Now seems to be drawing near the bank

It's High time that they gear up show
Forgetting their attire of tie and bow
They need to now get the act together
To have at least one shining feather

My Plea to Sleep

Why do you shy from me
Where did you hide yourself
Why don't you show up
When I need you the most

Often you have weird timing
You sound Hoarse than rhyming
You seem to be so far and away
Increasing is the distance in a way

I am  mesmerized for  indeed
For the way you playing
I am not sure but why
You making me miss you

The reason I look for you
Is just to get a little cozy
The reason why I chase you
Is just that I need you

Why don' you treat me
The way your forms treat others
O' my sleep, please do tell me
Why do you deprive me of your embrace

Please listen to my plea
Please honor my wish
I request you to be with me
O' my sleep when I need you the most!!!

FW: Hotel California - Gujju Version

With No Intention to hurt any community or any person I am sharing a nice work of Creativity.  This is solely for the recreational purpose and needs to be taken on a lighter Note.  Though this is work of someone unknown, but this is here to be shared with my Friends and readers of my blog :)

For the sake of both English and Hindi / Gujarati reader, I have worked to convert the English version of this song to Hindi / Gujarati too..... and yeah there are few edits here and there too :P
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On Western Express highway
Navratan tel in my hair
Warm smell of theplas
rising up in the air
Up ahead in the distance
I saw a shimmering light
My had grew havy, aney, my sight grew dim
It was Hetal ben I was right!


There she stood on the highway
I heard the ringtone bale
And I was thinking to myself
This could be Phalguni Pathak, not Adele
Then she lit up a metch stick and she showed me the way
There were voices down the corridor
I thote I heard them say...


Welcome to the nite of disco dandiya
Such a lovely place
Such a lovely face
Planty of food at disco dandiya
Nine nights of year, you can find it here


Her mind is gathiya-twisted, she got the healthy thighs
She got a lot of pratty pratty boys, that she calls bhais!
How they do garba in cot yard, switt summer swat
Some go arararara, and some forgat!


So I called Baku fui's husband
please bring my chaas
he said we havent had that glass since we have nirjal upwaas
End steel those voices are colin froam far hawey!
Wake you up in the middle of ratrau
Just to hear them say...


Welcome to night of disco dandiya
Such a lovely base
Underneath your drase ;)


They shakin it up at disco dandiya
what a nice surprise, bring Rames, Sures bhais!


Mirrors on the ghagra choli
Pink odhni that is supakk nice
Aney she jau we are al just dancer here, wearing zari work on our Levi's
And then at Ghatkopar samaaj hole,
They gaythered for the feast
They eat it all with gusto
and go back to buffet hole for one more repeat!


Last thing I remember, I was
Running for the loo
I had to wait back
for people to finish before
Relax said Bakul maasa
We are programmed to receive
You can EAT as much as you want
But you cannot just SHEET!!
वेस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे पे
लगावी ने नवरत्न तेल में बालों मा
हवा मा उड़ती ताजा गरम थेपला नी खुसबू
अने साथ मा आती ताज़ी हवा
पछे थोड़ी दूरी मा
अमे देखि एक चमचमाती लो
अमारो सर घूमी गयो
, अने नज़र चुंधियाई गी
आ तो हेतल बेन छे
, अरे आ तो हेतल बेन छे

हेतल बेन जे खड़ी हाईवे पे
अमे सूनी एक रिंगटोन नी बेल
अने हूँ सोच्यो अपना आप मा
आ तो फाल्गुनी पाठक होवी सके
पछे ओने माचिस जलावी अने अमारे राह दख्लावी
अमे सोचूं अमे आ सुणियो

डिस्को डांडिया मा तमारो स्वागत छे
एटली सारी जगो
एटला सुन्दर चेहरा
नाना प्रकार नो भोजन खावा माटे
नवरात्रि मा तमारे सब मल्शे
आ डिस्को डांडिया मा तमारो स्वागत छे

त्यानो गठिलो सरीर
, त्यानी भरी भरी थाईज़
त्याने आस पास बहु सारा छोरा छे
, जेने भई बोलिस
आजे एटली गर्मी मा
, ऐ लोग गरमा कसा रमता
अत्यारे करे अर्रर्रर्र न ते पाडिस दो चार स्टेप्स

पछी अमे बाकू बुआ ना हसबंड ना बुलाव्यो
अने एक छास मंगावी
ते अमारे कहव्यु त्यारे निर्जल उपवास छे
आ करता छास नो ग्लास नथी मंगाव्यु
हजु आवाजे दूर दूर ती पण आवती
आधी रात मा तमे जो उठो तो तमे आज हुणो

आ डिस्को डांडिया मा तमारो स्वागत छे
एटलो सारु सरीर
, एटलो सारो बदन
तमारा घागरा चोली में छुपे

एटला सारा मानस
, एटला सारा मानस
डिस्को डांडिया मा झूमें
अत्यारे आजे आविस रमेस अने सुरेस भाई

घागरा चोली नो देस

अने गुलाबी ओढनी सरस
अत्यारे अमे सब अय्याँ नाचता
, पेरी ने जीन पे जरी नो ड्रेस
अने पछी घाटकोपर समाज होल मा
तमाम लोग जमवा माटे आव्या
अने उल्लास साथी जमता जाय छे
वारंवार भोजन कक्ष मा जावे पछी प्लेट भरवा माटे

आखरी वात अमारे याद हती,
अमारे मुतरडी जावू हतो
अने अमारे राह जेवी हती
लोगा नु पहिला फारिग होवा माटे
त्यां बकुल मासा कहव्यु के
अमे लोगा खावा माटे वन्या
जेटलू जाए एटलो तमे जमी शको छो
पण तमे पेट खाली नथी करी शको

आ पछी एक आवाज आवी
डिस्को डांडिया मा तमारो स्वागत छे
एटलो सारू देस
, घाघरा चोली नो देस

Wednesday, January 18, 2012

हृदयगाथा

नैनं में नीर है, मष्तिष्क में अस्थिरता
चित्त  मेरा है आज अशांति का प्याला
ह्रदय में पीड़ा है, पीता मैं जिसकी हाला
अर्पण की है जीवन ने मुझे ऐसी अश्रुमाला

प्यास तेरी मैं कैसे बुझाऊं प्रिये 
जब पीता हूँ खुद  ह्रदय की ही हाला
व्यथा कुछ ऐसी है जीवन की
कि है मेरा मन ही एक मधुशाला

मधुता जीवन की में हार चुका कबसे
है अब तो आँखों से छलकती ये अश्रुमाला
गाथा ह्रदय की कैसे कहूँ मैं तुझसे प्रिये
कि  जीवन मेरा बन गया एक मधुशाला

प्याले में जो आज मद भरी है
है  वो मेरे ह्रदय की ही हाला
विषाक्त  है जीवन कुछ ऐसा
जैसे हो नीलकंठ की प्रतिमाला

जीवनपथ के ऐसे दोराहे पर खड़ा मैं
जहाँ नहीं कोई मार्गदर्शन करने वाला
द्विविधा और असमंजस में है मन
ये सोच कर किस ओर है जाना

हर सोच अलग है हर सुझाव है निराला
जिससे भी पूछता हूँ पथ अलग ही बतलाता
दृष्टिहीन है गंतव्य मेरे इस जीवन का
नहीं कोई साथी जो हाथ पकड़ मुझे दर्शाता

ह्रदय की मेरे पीड़ा आज बन गई है हाला
जग में विचरता मैं गूंथता अपनी अश्रुमाला
कुछ ऐसी है मेरे अनूठे जीवन की ये व्यथा
नहीं कोई जिसे समझाता में अपनी हृदयगाथा

Tuesday, January 17, 2012

Mother

It's tough to make her understand
It's tough to understand her
It's the most delicate situation
When I deal with her

She is my best Well Wisher
She is my best friend
She holds the key to my life
When she is around me

Such Lovely is my relation with her
Such Divine is my bond with her
I would die to see her smile
I would live to make her smile

I miss her when I don't see her
I miss her when I don't talk to her
She is my life's instructor
Yes, She is my lovely Mother

Yes - She is my lovely mother

मेरा रब

दर्द-ऐ-दिल का गिला किससे करें जानिब
कि यहाँ तो फिजाएं भी ग़मगीन हो चली हैं
यहाँ हम हर कदम जार जार हुए जाते हैं
वहाँ वो हमारी बेवफाई को जाहिर किये जाते हैं
कहे जाते हैं वो हमसे ऐ कुछ यूँ ऐ खुदा
कि हम अपने शौक में खोये जाते हैं
क्या कहें उनसे कि निगाहे दर पर लगी हैं
सर भी हमारा यूँ झुका है राह में
उनके लजराते लबों पर वो शब्द नहीं
जो उनकी धडकनों की ख्वाहिश है
अब क्या कहें और क्या दुआ करें रब से
कि ऐ कातिल, मेरा रब ही मुझसे खफा है

Sunday, January 15, 2012

सफलता की कुंजी

पथ  में अडचने आएंगी बहुत
साथी  कहेंगे सारे कटुवचन
किन्तु निश्चय कर तुम आगे बढ़ो
अथक परिश्रम से तुम कभी ना डरो

लक्ष्य पर केंद्रित करो तुम ध्यान
संभल के करो अपना हर जतन
कठीनाइयों का तुम करो सामना
सफलता की सदा करो आराधना

अडिग रखो तुम अपना विश्वास
अचल रखो तुम अपना ध्यान
तभी होगी जीत तुम्हारी
तभी पूरी होगी तुम्हारी कामना

Thursday, January 12, 2012

अभिव्यक्ति

मैं गरीब बोल रहा हूँ
और मैं विचारों से गरीब हूँ
मेरी गरीबी पैसों से नहीं
मेरे अव्यक्त विचारों से है

बचपन में अपने मैंने
ममता की गरीबी देखी
उस  गरीबी से मेरे
ममत्व पर विचार  अव्यक्त हैं

पाठशाला में अपनी मैंने
शालीनता की गरीबी देखी
उस गरीबी से मेरे
शालीन विचार अव्यक्त हैं

महाविध्यालय में मैंने
विध्या की गरीबी देखी
उस गरीबी से मेरे 
कर्त्तव्य पर विचार अव्यक्त हैं

सत्ता की दौड में मैंने
संहिता की गरीबी देखी
उस गरीबी से मेरी
सरकारी तंत्र पर निष्ठा........
.........अव्यक्त है !!!!!

पैगाम

परेशाँ गर वो हुए रातों में जाग कर
तो ये उनकी दीवानगी नहीं
तेरी जुल्फों की क़यामत थी
गर उसे तुझसे इश्क हुआ
तो ये उसकी नासमझी नहीं थी
था ये तेरी अदाओं का गुनाह
गर उन्होंने काटी ये रातें ख्वाबों में
तो ये उनके ख्वाबों की ताबीर नहीं
थी ये तेरी बेफवाई का सबूत
ना हंस यूँ उनकी बेचैनी पर बेहया
कि उनका जनाजा निकलेगा
कर रुख तेरी ही डोली की ओर

लक्ष्य

ढूंढता हूँ बहुत दिनों से मैं
गहरे सागर में एक मोती
तपिश बहुत की है मैंने
जीवन  अपना सवारने की

तपन  तो हुई बहुत मुझे
गहन चिंतन मनन में
दृढ़  निश्चय कर फिर भी
चला मैं जीवन डगर पर



अडचने बहुत सी आईं
हुई बहुत सी द्विविधा
किन्तु अडिग रहा मैं
अपने ही प्रयत्न में

ना मुझे अब विजय की चाह है 
ना है हारने का कोई भय
लक्ष्य है अब कोई मेरा
तो है सात्विक जीवन

दास्ताँ

आहट जो हुई दरवाजे पर
उनके आने का एहसास हुआ
जब नज़रें उठीं उनकी ओर
उनसे ही निगाहें चार हुई

कुछ ख़ामोश थी उनकी निगाहें
कुछ खामोश हुई हमारी नज़र
एक लम्हा कुछ यूँ ही गुजारा
खामोश निगाहों की गुफ्तगू में

कदम उनके भी लडखडाए
ज़रा हम भी डगमगाए
इश्क का ये सफर
था ही पथरीली राह में

ना आह निकली उनकी जुबां से
ना हमने कभी उफ़ तक की
दास्ताँ यूँ ही बन पड़ी
जब हमारी निगाहें चार हुई


Thursday, January 5, 2012

भ्रष्टाचार की विनती

ना दो मुझे यूँ ताने, ना दो मुझे गालियाँ
मैं खुद नहीं जन्मा, अंग्रेज मेरे जन्मदाता हैं
बरसों से सत्ता के कमरों में कैद हूँ
चंद अफसरों का में एक सेवक हूँ
कूटनीति की चिकनी मिटटी से लिपा
तुम्हारे ही आलिंगन में सजी एक सेज हूँ
सदिओं के इस नाते को क्या ऐसे ही छोड़ दोगे
एक अन्ना के कहने पर नाते तोड़ दोगे
अहिंसा के पुजारी के देश में इतनी हिंसा
मेरे बंधू बांधवों पर इतना अत्याचार
अरे सोचो इस लोभ और इस मोह का
जिसके चलते तुम तुम बने
जरा सोचो उकने अथक परिश्रम का
जिससे चलती देश की कार्यप्रणाली है
हो जाएंगे वो बेघर और बेसहारा
कहीं शेष शैया पर तुमने मुझे लिटा दिया
मानो बात मेरी, ले लो वचन ये सारे
जीवन यापन कर लूँगा मैं चरणों में तुम्हारे
इतनी सेवा कि मैंने तुम्हारी बरसों
अरे एक तो मौका बनता है दो कल या परसों
भाँती भांति की जात यहाँ पर
भांती भांती के लोग प्रकार
कहीं जी लूँगा में साथ उन्ही के,
साथ अगर ना ले चलो मुझे तो
इतना तो कर जा हे आदम 
मान अरसे की मेरी इस तपस्या को
बचा ले इस आंदोलन से मुझको
ना मिटाओ मुझे मेरी जड़ों से
कि यहीं तो मेरा निवास है
अरे गोरा जो मुझको लाया था
उसी के घर का तिरस्कार हूँ मैं
प्रार्थना यही है मेरी तुमसे
रहने दो इस कर्मभूमि पर मुझे

Wednesday, January 4, 2012

Waking up from a Dream

The day when I woke up
From my dream of love
I was sad, I was gloomy
For I was facing the reality

Life seemed all to harsh
Without my beloved's charm
She was gone is what I knew
It was like a bitter pill to chew

I was wondering if it were true
Couldn't accept till curtains drew
I always thought She was mine
Bright in the dreams like Sun Shine

Never did I think otherwise
Always thought She was nice
Now Lying near my pool
I feel I had been a fool

She walked out of my life
Poking me with a Ivory knife
She left me here all alone
She is now a history all gone

How do I wipe my life's slate
How do I improve my life's state
It's too hard to forget what she did
and to heal my wound that's deep

Tuesday, January 3, 2012

एक गुजारिश

नज़र अंदाज़ करना तो एक बहाना है
किसी को नज़रों से गिराने का गुनाह है
यादों के चिलमन से उनको देखो
उनके साथ बिठाये उन लम्हात को देखो
क्या सितम कर बैठे हो तुम उनपर
जिंदगी से अपनी उन्हें निकाल कर
बढ़ा कदम जरा उन्हें आगोश में लो
अपनी जुल्फों के साये में उनको अमन दो
जरा उस गुज़ारे लम्हात को जीना सीखो
उनकी खता बक्शा उन्हें जीने का मौका दो

कुछ सवाल

रात के अंधियारे में क्या खुद से डरते हो
क्या उन सन्नाटों में अपनी धडकन से डरते हो
तोहफा हमारा तो एक खुली किताब था
जिंदगी के अंजाम सा एक खुला आसमान था
ना जाने यूँ तुमने सौगात को सजा समझा
ना जाने क्यूँ तुमने वफ़ा को इश्क समझा
हमनें तो साथ निभाने का वादा किया था
ना जाने क्यों तुमने उसे कसम-ऐ-मोहब्बत समझा

मेरी यादें

आज कुछ यादें ताज़ा कर रहा हूँ
वो  यादें जो मेरी अपनी हैं
वो यादें जो मेरे जेहन में हैं
वो यादें जो मुझे धोका नहीं देंगी
वो यादें जो मुझे कभी नहीं छोडेंगी
वो यादें जो मेरी तन्हाई की साथी हैं
वो यादें ओ तेरी बेवफाई का कलाम हैं
वो यादें फिर भी मेरी अपनी हैं
वो यादें वो बेवफा नहीं हैं
आज वो यादें ताजा कर रहा हूँ
तेरी आँखों में जुदाई का दर्द देख रहा हूँ

Monday, January 2, 2012

इश्क का कलमा

एक  सवाल कुछ ऐसा मन में आया - 
प्यार की गर इतनी चाह है तो तू खुद से प्यार कर
इतनी ही गर तड़प है तो खुदा से तू प्यार कर
ना कर प्यार की गुज़ारिश तू इस इंसान से
इसने तो खुदा को ना बक्शा, तेरी बिसात क्या है
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कुछ  सोच बदली तो उसका जवाब भी कुछ ऐसा आया -
शाम-ऐ-उलझन उनके बेवक्त आने से हुई
उन्हें अपनाने की ख्वाहिश उनसे मिलकर हुई
तूफां-ऐ-समंदर से अब क्या डरना
कि जब हम मोहब्बत कि कश्ती में सवांर हैं
अब तो जिद की ना कोई हद्द है
ना है डर अंजाम-ऐ-मोहब्बत का
है जान अब उनकी कातिलाना अदा के हवाले
कि अब तो इश्क ही हमारे खुदा की बंदगी है

अक्स-ऐ-जिगर

अक्स बयां ना कर अपने जिगर का
कुछ तो ख्याल कर अपने इश्क का
यूँ बेगैरत कर बेजार ना कर 

यूँ  बयां कर दर्द उजागर ना कर

तेरी जिंदगी पे कुछ निशाँ उसके भी हैं
जो रूह को छू निकला है तेरे
दर्द जो भर गया दामन में तेरे
सर्द  एक अंदाज दे गया तेरी आँखों में



ना कर गिला उस मोहब्बत का  
जो ना तेरी थी ना उसकी
एक लम्हा था जो बह गया
वक़्त के समंदर में तो खो गया

व्याकुल मन

भोर भई सूरज उंगने को है
पर ये व्यथा कैसी ह्रदय में है
नींद नहीं आँखों में
चंचल चित भी चिंतित है

कोई तो पीड़ा है इसे
व्यक्त नहीं करता उसे
निद्रगोश में जाने से
क्यों व्यर्थ व्याकुल है

मनन चिंतन भी अब व्यर्थ है
कठिन अब दिवस व्यापन है
घनघोर पश्चाताप को व्याकुल
निराधार ये पागल है

ना समझ है ये ना सुनता है
ना ही ये कुछ कहता है
अब तुम्ही इसे समझाओ
कि ये तो सिर्फ तुम्हे ही मानता है