Monday, October 1, 2012

वो लम्हात

याद हैं मुझे वो लम्हात
जब हुआ था दीदार तेरा
क्या हंसीं पल था 
क्या हंसी था मंज़र

चहरे पर तेरे उडती वो लट
आँखों में मेरी मौजूदगी का सवाल
हाथों में उन चूड़ियों की खनक
होठों पर तैरती एक मुस्कराहट

वो मंज़र वो पल वो लम्हात 
बस गए हैं दिल में मेरे
दिया तेरी चाहत का दिल में जला
राह तेरी तक रहा हूँ अब मैं

जो नशा है इस इंतज़ार में
कैसे बयान करूँ में तुझसे
बस अब एक ही इल्तेजा है तुझसे
तू भी कर ले मोहब्बत मुझसे||

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