कल्पना की डोर थामें
शब्दों की माला पिरोये
कविता की पंक्तियों में
काव्य का आगमन हुआ
काव्य के आगमन से
कवि की कल्पना में
शब्दों की माला पहने
सजनी आभास हुआ
सजनी के आभास से
उसके श्रृंगार में
उसकी मधुर मुस्कान में
नवजीवन का आरभ हुआ
नवजीवन के आरम्भ से
कवि के श्रजनात्मक रूप से
नारी के श्रृंगार से
शब्दों की माला पिरोये
कविता की पंक्तियों में
काव्य का आगमन हुआ
काव्य के आगमन से
कवि की कल्पना में
शब्दों की माला पहने
सजनी आभास हुआ
सजनी के आभास से
उसके श्रृंगार में
उसकी मधुर मुस्कान में
नवजीवन का आरभ हुआ
नवजीवन के आरम्भ से
कवि के श्रजनात्मक रूप से
नारी के श्रृंगार से
काव्य की कल्पना का प्रारंभ हुआ||
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