कहाँ चला था करने मैं अभिव्यक्ति
छीन गयी है मेरी हर शक्ति
चेष्टा हुई, अपनाई मैंने भक्ति
किन्तु रह गई अधूरी मेरी अभिव्यक्ति
कहा जिसे, उसने कर दी अनसुनी
बन के सामने मेरे एक अज्ञानी
बहा कर भी मैं अपना रक्त
ना कर सका अपनी भावना व्यक्त
चला था मैं करने अभिव्यक्ति
किन्तु ना मिला मुझे एक भी व्यक्ति
सुन सकता जजों व्यथा मेरे जीवन की
राह बताता जो मुझे शांतिपूर्ण जीवन की
मेरे ही अश्रुओं में हुई वो विलीन
कर गई मेरे ही ह्रदय को मलीन
दे गई मुझे रूद्र रूपेण अनुभूति
किन्तु फिर भी अधूरी रह गई अभिव्यक्ति
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