Monday, October 1, 2012

चाहत

पहली तारीख को हुई पहली वो मुलाक़ात
दिल में बहार आई कि अभी जवान होगी रात
फिलहाल तो दिल कर रहा है मेरा इंतज़ार
कि कब आएँगे बनके वो मेरे जाने बहार

कैसी है ये शिद्दत कि कब बीतेंगी ये घड़ियाँ
जाने कब आएगी वो तोड़ ज़माने की कड़ियाँ
जाने कब वो थामेगी मेरा हाथ
जाने कब आएगी रुत जब होगी वो मेरे साथ

मंज़र अब हुआ जाता है कुछ धुंधला
लगता है जैसे किस्मत ने रुख है बदला
दुआ बस अब यही करतें हैं
साथ दे किस्मत ना वो धोखा दे

गम-ऐ-उल्फत से हम जुदा हुआ चाहते हैं
उनके आगोश में ता ज़िन्दगी जीना चाहते हैं
उनकी मुस्कराहट पर हम फ़िदा रहना चाहते हैं
अब हम उनके हाथ थाम ही जीना चाहते हैं||

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