Thursday, June 28, 2012

ज़िंदगी के रंग

जिंदगी के रंग देखे जिस कदर
खून-ऐ-जिगर सूख गया
रिश्तों की टूटती डोर देखकर
आंसुओं का बाँध टूट गया

ज़िंदगी के बिखरे टुकड़े बंटोरते
हाथों का रंग सूख गया
राह के कांटे हटाते
चेहरे का नूर सूख गया

जिंदगी में अपने जज्बातों को समेटते
यादों का बसेरा खो गया
घर अपना बचाने निकला था मैं
राह में अपनी हस्ती भूल गया

चाह कर भी ना मैं बचा सका अपना वजूद
ना बंधे रख सका मैं रिश्तों की डोर
एक हाथ में था मेरे वालिद का हाथ
और दूजे से मैं तुझको ना थाम सका

जिंदगी के रंग देखने में
मैं रिश्तों के रंग बिखेर आया
राह पर चला था मैं घर बसाने
सरे राह अपनी हस्ती भूल चला

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