Wednesday, June 6, 2012

सच कहने की सजा पाते हैं

जगजीत साहब की गज़ल की दो पंक्तियाँ अभी याद आई -
सच्ची बात जो कही मैंने,
लोगों ने सूली पर चढ़ाया

इसी पर कुछ पंक्तियाँ मेरे जेहन में भी आयीं -

सच कहने की सज़ा पाते हैं 
झूठ की इस दुनिया में हम जीते हैं
किससे कहें हम अब दिल की बात 
जिससे कहते हैं वो हँसते हैं

कैसे कहें हम अब अपनी बात 
जब कहते हैं वो हँसते हैं
झूठ की इस दुनिया में अब जीते हैं
सच कहने की सजा पाते हैं

मसीहा नहीं जो सूली चढ़ जाएँ
फरहाद नहीं जो मोहब्बत में मर जाएँ
नहीं हम कोई परवाने
जो शमा के रोशन होते जल जाए

गर जीना है सच को घोंटकर
नहीं जिएंगे हम अपना वजूद खो कर 
इंसान हैं हम जीना हमको इंसान बनकर
ना जी सकेंगे हम फरिश्ता बनकर

झूठ की अगर ये दुनिया है तो
नहीं जीना हमें इस दुनिया में 
हंस कर हम जाँ दे देंगे 
गर एक बार वो सच सुन लें तो 

सच वो कड़वा होगा
लम्हा वो मेरे दिल की दवा होगा
नहीं आसाँ है ये मेरे लिए 
फिर भी उनसे सच कहना है

कैसे कहें हम अब अपनी बात 
जब कहते हैं वो हँसते हैं
झूठ की इस दुनिया में अब जीते हैं
सच कहने को हर पल मरते हैं

सच कहने की सजा पाते हैं 
झूठ की इस दुनिया में हम जीते हैं
किससे कहें हम अब दिल की बात 
उनसे कहते हैं वो हँसते हैं 

1 comment:

Anonymous said...

sach to phir bhi sach hai
kabhee to saamne aaega
gar wo aaj hanste hein sach par
kaheen to unko iska ilm hoga
naa tu kar ranz is gum mein
ki vo hanste hein tere aansuon par