This Blog is collection of my poems that come to my mind on the situational feelings / thoughts that cross through my mind. They are either based on real life event or are based on inspirational line from my readings. They are just the work of art & have No connection to My personal Life in General. 20/11/2012 - Even though I had stated that my poems are just work of art, but some of my poems have been Presented Negatively so I have taken them off
Friday, December 22, 2017
Dilemma About Life
रूह के ज़ख़्म
रिश्तों का आलम
Monday, August 21, 2017
दम्भ में चूर ईश्वर
कैसे करें है कैसी यह शक्ति
विचार विमर्श भी किससे करें
अपनी व्यथा कहाँ धरें
हर और यहाँ दम्भ है फैला
जीवन को क़र गया मटमैला
जिससे पूछो दम्भ की औषधि
जताता है वही दम्भ की विधि
पंहुचा ईश्वर के भी द्वार
की प्रार्थना कर दम्भ का संहार
दम्भ से भरा ईश्वर भी बोला
मानव है तू बहुत ही भोला
मन में सोचा कैसी है यह ठिठोली
दम्भ में चूर ईश्वर की भी बोली
ईश्वर फिर बोला है मानव
दम्भ ही तो है सृष्टि में दानव
दानव का कर दूँ यदि मैं संहार
कौन करेगा इस जग में मेरा प्रचार
पा कर ईश्वर को भी दम्भ में चूर
छोड़ आया मैं आस अपनी दूर
दम्भ में ही जीवन है मरण
दम्भ में ही ईश्वर का भी है स्मरण
दम्भ में जब है ईश्वर
तब कैसे होगा दम्भ का संहार
दम्भ प्राकृतिक है या प्रकृति
कैसे करें है कैसी यह शक्ति
हर और यहाँ दम्भ है फैला
जीवन को क़र गया मटमैला
दम्भ में चूर ईश्वर भी बोला
मानव है तू बहुत ही भोला
Sunday, June 11, 2017
Life's Trust
करना है दंभ का संहार
शिव से पूछो क्या है मुझमें
मुझमें मेरा शैंतां नज़र आता है
तो मेरे दीदार से मेरे दिमाग का इल्म नहीं होता
कहीं गर तुम मेरे आब -ऐ-तल्ख़ देखोगे
तो कहीं मेरे दर्द का हिसाब मत लेना
कि मेरे चेहरे के इंतेखाब-ऐ-आलम से
मेरी हार का हिसाब मत लेना
मुस्कराहट से कभी हाल-ऐ-दिल बयां नहीं करता
मैं अपनी जुबां से कभी दर्द बयाँ नहीं करता
गर कही तुम चले भी गए दर्द दे कर
तो याद रखना मैं बद्दुआ किसी को नहीं देता
मेरे अक्स में गर कभी झांकोगे
तो खुदा का नूर तुम्हें नज़र आएगा
लेकिन गर कभी मेरी आँखों में देखोगे
तो मंज़र-ऐ-तूफ़ां नज़र आएगा
नज़ाकत मैं कब की पैमानों में डूबा आया हूँ
खुद से मैं कब का खुद को निजात आया हूँ
कि अब तो मेरा खुदा भी मुझसे डरता है
जब मुझमें मेरा शैंतां नज़र आता है
गर तुम्हें अब भी गुमान है अपने इल्म का
तो एक बार फ़िज़ाओं से पूछ कर देखो
कि अब तो मेरा खुदा भी मुझसे डरता है
जब मुझमें मेरा शैंतां नज़र आता है
Saturday, June 3, 2017
Betrayal
Monday, May 29, 2017
एक कवि की पीड़ा
Sunday, May 28, 2017
बात की बात
ज़िन्दगी के फलसफे
Thursday, May 4, 2017
आसार ऐ हालात
ना हालात ना ही आसार मेरी ज़िंदगी है
कि ज़िन्दगी नहीं बनती इनसे मुक्कमल
तासीर इनकी मिलती जरूर ज़िन्दगी में
लेकिन ज़िन्दगी इनकी मोहताज़ नहीं
चलें हम ज़माने के साथ कभी
या कभी ज़माना चले साथ हमारे
ज़िन्दगी में इसका अहम इतना नहीं
जितना है हमारी ज़िंदगी का हमारे लिए
सोचते हैं अक्सर हालात यूँ न होते
की अभी आसार भी ऐसे ना बनते
ज़िन्दगी हमारी भी आसाँ होती
लेकिन कुछ और भी तो हालात होते
बस अब इतना ही इल्म है हमको
कि हालात कहो या कहो आसार
तज़ुर्बा यही कहता है ऐ ज़िन्दगी
कि कयामत तक ही है तेरा सफर।।
Saturday, April 29, 2017
सिंगार
Thursday, March 16, 2017
हर हर हर महादेव
तुझमें ही जग है
विनाशक है तू रचयिता भी तू
मानव के मश्तिष्क से
दानव के अंतर्मन में
बसा है केवल तेरा ही नाम
चैना
Wednesday, January 18, 2017
कल्पना
जीवन कलह
नहीं है स्थिर जीवन, पनप रहे उग्र विचार
नहीं चाहता जीवन में कोई अल्पविराम
नहीं चाहता कोई जीवन में स्थिर कोलाहल
किन्तु जीवन फिर भी है अस्थिर
जीवन में फिर भी है एक कलह
हलाहल जीवन की मैं पी चुका
कोलाहल फिर भी मिटा नहीं
जीवन हाल बन गई अश्रुमाला
कोहराम फिर भी थमा नहीं
कैसे कहूँ, किससे पूछूँ कैसी है विडम्बना
कैसे जिऊँ, किससे जानू मैं इसका उत्तर
कलह अंतर्मन का कहता है मेरी सुन
किन्तु नहीं पिरो सकता मैं उससे वर्णमाला