कलह अंतर्मन का कहता है मेरी सुन
हृदयालाप कहे तू मेरी सुन
मष्तिष्क में भी मचा है कोलाहल
नहीं है स्थिर जीवन, पनप रहे उग्र विचार
नहीं चाहता जीवन में कोई अल्पविराम
नहीं चाहता कोई जीवन में स्थिर कोलाहल
किन्तु जीवन फिर भी है अस्थिर
जीवन में फिर भी है एक कलह
हलाहल जीवन की मैं पी चुका
कोलाहल फिर भी मिटा नहीं
जीवन हाल बन गई अश्रुमाला
कोहराम फिर भी थमा नहीं
कैसे कहूँ, किससे पूछूँ कैसी है विडम्बना
कैसे जिऊँ, किससे जानू मैं इसका उत्तर
कलह अंतर्मन का कहता है मेरी सुन
किन्तु नहीं पिरो सकता मैं उससे वर्णमाला
नहीं है स्थिर जीवन, पनप रहे उग्र विचार
नहीं चाहता जीवन में कोई अल्पविराम
नहीं चाहता कोई जीवन में स्थिर कोलाहल
किन्तु जीवन फिर भी है अस्थिर
जीवन में फिर भी है एक कलह
हलाहल जीवन की मैं पी चुका
कोलाहल फिर भी मिटा नहीं
जीवन हाल बन गई अश्रुमाला
कोहराम फिर भी थमा नहीं
कैसे कहूँ, किससे पूछूँ कैसी है विडम्बना
कैसे जिऊँ, किससे जानू मैं इसका उत्तर
कलह अंतर्मन का कहता है मेरी सुन
किन्तु नहीं पिरो सकता मैं उससे वर्णमाला
No comments:
Post a Comment