अधूरी भ्रान्ति अधूरे क्षण
अधूरे हैं जहाँ सारे प्रण
अधूरी शांति अधूरे रण
अधूरे हैं यहाँ सत्ता के कण
राष्ट्र ये मेरा आज अधुरा है
सत्ता के भूखों से भरा है
जीवन यहाँ आज निर्बल है
जनता की सोच भी दुर्बल है
अधूरी सोच नेताओं की
अधूरी होड़ प्रशाशन की
अधुरा यहाँ हर कृत्य है
अधूरे सपने यहाँ अपने हैं
राष्ट्र आज तो स्वतंत्र है
कहने को यहाँ प्रजातंत्र है
फिर भी लगता अधुरा है
चूंकी जनता यहाँ निर्बल है।।
2 comments:
Sahi farmaya.
"राष्ट्र आज तो स्वतंत्र है
कहने को यहाँ प्रजातंत्र है....."
Sir these two lines of your were full of sarcastic essence...
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