Monday, January 7, 2013

लम्हात

आने से उनके कुछ लम्हे बदल से जाते हैं
उन लम्हों में हमारी ज़िंदगी बदल सी जाती है
चंद उन लम्हों की खातिर जीते हैं 
कि उन लम्हों में हमारी कायनात बदल जाती है 

जिन लम्हों में उनका साया नसीब होता है 
उन लम्हों में हमारी तकदीर बदल जाती है 
हसीं हर जर्रा हर खिजाब नज़र आता है 
उस लम्हे में ज़िंदगी सिमट आती है 

उन लम्हात का आलम कुछ यूँ  होता है 
कि खुद की खुदाई का अहसास होता है 
कुछ मंज़र  कदर होता है 
कि उनकी नज़रों में नशा शराब का होता है 

गर वो नहीं तो वो लम्हात नहीं
बिन उनके ये कायनात नहीं
उन लम्हों को जीने के लिए ऐ खुदा
ना कर हमें उनसे इस कदर जुदा


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