ज़िन्दगी में देखी तिजारत बहुत
बहुत देखी बेवफाई
ना कोई उम्मीद थी कहीं
ना था हमारा कोई सपना
दर दिन तरसते थे
खोजते थे हम अपनी ज़िंदगी
ना कोई और हसरत थी
ना थी उम्मीद-ऐ-वफ़ा कोई
दिन बीते, बीते महीनो साल
ना हुई ज़िंदगी फिर भी बहाल
भटकते रहे दर दर हम यूँही
ना हुई ख़त्म तलाश-ऐ-ज़िंदगी कही
फिर उस पल उस लम्हे में तुम मिली
ऐसा लगा जैसे जिंदगानी मिली
तुम आई तो लगा जैसे आई बहार
तुम्हारे आने से हुई खुशियों की बोछार
साथ अपने तुम लायी मेरी ज़िंदगी
सिला दे गयी आखिर मेरी बंदगी
तुम्हारा आना है मेरे खुदा की नेमत
तुम आई बनकर खुदा की रहमत
कर्मो-ईमान से मैं तुम्हें चाहता हूँ
इश्क में तुम्हारे मैं शामो-सहर जीता हूँ
सिर्फ तुम हो मेरी जिंदगानी में आज
तुम्हारी हंसी है मेरी जिंदगानी का साज़
हसरत बस यही है अब हमारी
कि बिताएं बाकी ज़िंदगी साथ तुम्हारे
साथ तुम्हारे इबादत करूँ मैं उस खुदा की
तिजारत का अंत हुआ नेमत से जिसकी||
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