गर तुम कुछ ना कहते हमसे
तो शायद ये दिल बैचैन होता
गर तुम ना करते शिकवा कोई
तो शायद ये दिल परेशाँ होता
गर ना करते यूँ तुम हमें रुसवा
तो शायद ये दिल यूँ ना धडकता
गर ना करते तुम क़त्ल हमारा
तो शायद ये रूह बेज़ार ना होती
कैसे कहें तुमसे कि लफ्जात तुम्हारे
हलक से हमारी जान ले गए
गर अब तुम गम-ऐ-उल्फत में जीते हो
तो ऐ बंदे मेरी कब्र पर पर ना रोना
तो शायद ये दिल बैचैन होता
गर तुम ना करते शिकवा कोई
तो शायद ये दिल परेशाँ होता
गर ना करते यूँ तुम हमें रुसवा
तो शायद ये दिल यूँ ना धडकता
गर ना करते तुम क़त्ल हमारा
तो शायद ये रूह बेज़ार ना होती
कैसे कहें तुमसे कि लफ्जात तुम्हारे
हलक से हमारी जान ले गए
गर अब तुम गम-ऐ-उल्फत में जीते हो
तो ऐ बंदे मेरी कब्र पर पर ना रोना
1 comment:
गर अब तुम गम-ऐ-उल्फत में जीते हो
तो ऐ बंदे मेरी कब्र पर पर ना रोना
theek hai ghar pe ro lenge, faltu mein teri kabra dhundhane kyon nikalein? Jo na to kabhi banani hai na hi jiska koi vajood hoga :))
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