उनकी मंजिलों में अपनी राहें ढूंढता फिरता हूँ
एक फकीर हूँ मैं चिरागों में रौशनी ढूँढता हूँ
गर मेरे रकीब से पूछोगे कि किस राह गुज़रा हूँ मैं
तो पाओगे की अपनी ही कब्र में बसेरा ढूँढता हूँ मैं
___________________________________
तवज्जो ना कर किसी की किनारे बैठ कर
गर हिम्मत है तो मजधार में कश्ती उतार
किनारे बैठ राह उनकी यूँ तक रहे हो
खुदाया ना करे की वो कश्ती में हो सवार
यूँ तुम बैठ उम्र अपनी गुज़ार दो इस कदर
और वो हो कि मजधार में परेशाँ हों
एक फकीर हूँ मैं चिरागों में रौशनी ढूँढता हूँ
गर मेरे रकीब से पूछोगे कि किस राह गुज़रा हूँ मैं
तो पाओगे की अपनी ही कब्र में बसेरा ढूँढता हूँ मैं
___________________________________
तवज्जो ना कर किसी की किनारे बैठ कर
गर हिम्मत है तो मजधार में कश्ती उतार
किनारे बैठ राह उनकी यूँ तक रहे हो
खुदाया ना करे की वो कश्ती में हो सवार
यूँ तुम बैठ उम्र अपनी गुज़ार दो इस कदर
और वो हो कि मजधार में परेशाँ हों
No comments:
Post a Comment